Book Title: Jain Dharm Parichay
Author(s): Rushabhprasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 821
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हनुमिर्दु मिक्क रसमं कनसिनोळं नेनेयदंतु माडेनगरुहा (मल्लिनाथ पुराण-10-112) (अर्हन्, आप तो केवल शान्तरस का ही प्रतिरूप हैं अत: आप मुझ पर यह अनुग्रह करें कि मैं उस रस के अलावा किसी अन्य रस के बारे में सपने में भी न सोचूँ) 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ के चरित चित्रण करने वाले 8 काव्य हैं। गुणवर्म I का 'हरिवंश' (900 ई. अनुपलब्ध), कर्णपार्थ का 'नेमिनाथ पुराण' (1160 ई. चम्पू) नेमिचन्द्र का 'नेमिनाथ पुराण' (1200 ई. चम्पू), बन्धुवर्म का 'हरिवंशाभ्युदय' (1200 ई. चम्पू), महाबल का नेमिनाथ पुराण (1254 ई.-चम्पू), तीसरे मंगरस का 'नेमिजिनेश संगति' (1510 ई.-सांगत्य), साळव का 'साळ्वभारत' (16वीं सदी षट्पदि) चन्द्रसागरवर्णि का 'जिनभारत' (19वीं सदी-षट्पदि)। इन काव्यों में नेमिनाथ के चरित के साथ वासुदेव कृष्ण और पांडवों के कथानक भी महत्त्वपूर्ण हैं। प्रद्युम्न का उपाख्यान भी सरस ढंग से चित्रित है। 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के चरित चित्रण करने वाले काव्यों में मरुभूति-कमठ की कथा अविस्मरणीय है। 1222 ई. में पार्श्वपंडित ने 'पार्श्वनाथ पुराण' (चम्पू), 1722 में शान्तकीर्ति मुनि ने 'पार्श्वनाथ चरिते' (सांगत्य) रचे हैं। 24वें तीर्थंकर वर्धमान के चरित को कन्नड़ कवियों ने आदरपूर्वक चित्रित किया है। दूसरे नागवर्म ने 1041 ई. में 'वर्धमान पुराण' (चम्पू), आचरण्ण ने 1200 ई. में 'वर्धमान पुराण' (चम्पू), पद्मकवि ने 1528 ई. में 'वर्धमान चरिते' (सांगत्य), जिनसेन देशव्रति ने 17वीं में 'वर्धमान पुराण' (सांगत्य) काव्यों में वर्धमान के पूर्वभवों का विस्तृत चित्रण और महावीर भव के पंचकल्याणों का चित्रण सुचारु रूप से किया है। अन्य शलाकापुरुषों कामदेव और आसन्नभव्य श्रावकों के चरित चित्रण करने वाले 30 से अधिक चरित काव्य प्रकाशित हैं। सैकड़ों काव्य पांडुलिपि के रूप में संरक्षित हैं। प्रकाशित कृतियों में नागकुमार चरिते' (कल्याणकीर्ति-1445, बाहुबलि-1590, बोम्मण1760, चन्द्रसागरवर्णि-1814) 'जीवन्धर चरिते' (भास्कर-1425, तेरकणांबि बोम्मरस1485) 'यशोधर चरिते' (जन्न-1230; पिरियनेमण्ण-16वीं सदी, पद्मनाथ-16वीं सदी) 'सुकुमार चरिते' (शान्तिनाथ-1070), 'सनत्कुमार चरिते' (तेरकणांबि बोम्मरस1485, पायणमुनि-1610) 'श्रीपाल चरिते' (तीसरे मंगरस-1510, इन्द्रदेवरस-1700), 'भुजबलि चरिते' (पंचबाण-1614) 'गोमटेश्वर चरिते' (अनन्त-1784, चदुर चन्द्रम1646) साहित्यिक गुणों से भरे हुए हैं। कुछ काव्यों में ऐतिहासिक विवर भी सम्मिलित हैं। जीवन्धर चरिते में यह उल्लेख मिलता है कि जब महावीर तीर्थंकर का समवसरण महिषमंडल में आया था। तब वहाँ के राजा जीवन्धर ने दीक्षा ग्रहण कर ली थी। महिषमंडल आज के कर्नाटक (मैसूर) का पुराना नाम है। निंबसामंत चरिते का नायक 812 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only

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