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तमिलभाषी जनता में प्रचार की दृष्टि से यह नीतिग्रन्थ तमिल साहित्य में सबसे प्रधान माना जाता है। इसकी रचना जिस छन्द में की गयी है, वह कुरलवेणवो के नाम से प्रसिद्ध है और तमिल साहित्य का खास छन्द है। पुस्तक का नाम 'कुरल' उसमें प्रयुक्त छन्द के कारण पड़ा है। सम्पूर्ण ग्रन्थ में अहिंसा धर्म की स्तुति है। तमिलवासी इस ग्रन्थ को अपना तमिल वेद या ईश्वरीय ग्रन्थ मानते हैं। इसी से तमिल प्रान्त के प्रायः सभी सम्प्रदाय इसे अपना बतलाते हैं। जैन-परम्परा भी इस ग्रन्थ को जैनाचार्य कुन्दकुन्द अपर नाम एलाचार्य की रचना बतलाती है। इस ग्रन्थ के तीन विषय मुख्य हैं-अरम (धर्म), पोरुल (अर्थ), इनवम् (काम)। ये तीनों विषय इस प्रकार समझाए गये हैं कि वे मूलभूत अहिंसा सिद्धान्त के साथ सम्बद्ध रहें। ग्रन्थ के आदि में ग्रन्थकार धर्म के अध्याय में लिखते हैं-सहस्रों यज्ञों को करने की अपेक्षा किसी प्राणी का वध न करना और उसे भक्षण न करना अधिक श्रेयस्कर है। यही जैनों का 'अहिंसा परमो धर्मः' सिद्धान्त है।
कुरल के सम्बन्ध में श्री एरियल कहते हैं- "कुरल में सबसे बढ़कर आश्चर्यजनक बात यह है कि इसके रचयिता ने जाति, धर्म, सम्प्रदाय आदि की ओर ध्यान न देकर समस्त मानव जाति को सम्बोधन किया है। उसने पूर्ण नैतिकता का सूत्र रूप में कथन किया है। उसने गार्हस्थिक और सामाजिक जीवन के सर्वोच्च नियमों को एक सूत्र में निबद्ध किया है। विचार, भाषा, कविता, आध्यात्मिक चिन्तन आदि पर उसका पूर्ण प्रभुत्व है।" ___ अनेक विदेशी भाषाओं में उसका अनुवाद हुआ है। उसके विचार प्रत्येक धार्मिक के हृदय और मस्तिष्क को आकृष्ट करते हैं। नालडियार
तमिल साहित्य में दूसरा उद्बोधक जैनग्रन्थ नालडियार है। कुरल और नालडियार एक-दूसरे के प्रति टीका का काम करते हैं। और दोनों मिलकर तमिल जनता के सम्पूर्ण नैतिक तथा सामाजिक सिद्धान्त के ऊपर महान् प्रकाश डालते हैं। नालडियार का नामकरण कुरल के समान उसके छन्द के कारण हुआ है। नालडियार का अर्थ हैबेणवा छन्द की चार पंक्तियों में की गयी रचना। इसके 40 अध्यायों में 400 पद्य हैं। कुरल के पश्चात् तमिल में इसी का आदर है। इसमें मनुष्य की तृष्णा के आधारभूत सांसारिक सुखों की अनित्यता और नि:सारता को बतलाकर गुणों के उत्पादन पर तथा सन्त जीवन पर विशेष जोर दिया है। इन पद्यों के रचयिता मदुरा के कुछ जैन हैं। इसमें सर्वोत्तम नैतिक विचार ग्रथित हैं।
तमिल भाषा के अठारह नीति ग्रन्थों में कुरल और नालडियार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण समझे जाते हैं। तमिल साहित्य के परम्परागत अध्ययन के लिए इन दोनों ग्रन्थों का अध्ययन आवश्यक है।
तमिल साहित्य में पाँच महाकाव्य हैं-शिलप्पदिकारम्, वलयापति, चिन्तामणि,
820 :: जैनधर्म परिचय
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