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ग्रन्थ की रचना की। 'नालदियार' में मुठ्ठरय्यर के दो उल्लेख हैं, जिनमें बतलाया गया है कि कलभ्र जैन हैं और तमिल साहित्य के संरक्षक हैं।
तमिल साहित्य को जैनों की देन तमिल साहित्य के भण्डार की बहुमूल्य सम्पत्ति है। तमिल भाषा में पाये जाने वाले संस्कृत यौगिक शब्दों का बहुभाग जैनों का ऋणी है। उन्होंने जो शब्द संस्कृत से लिये, तमिलभाषा के स्वरसम्बन्धी नियमों के अनुसार उन्हें परिवर्तित कर दिया। जैन तमिल साहित्य की एक बड़ी विशेषता यह है कि कुछ उच्चकोटि के ग्रन्थों में, उदाहरण के लिए 'कुरल' और 'नालडियार' में किसी विशेष धर्म और देवता का निर्देश नहीं है। केवल तमिल साहित्य ही नहीं, कर्नाटक साहित्य का बहुभाग भी जैनों का ऋणी है। यथार्थ में वे इनके मूल उत्पादक हैं।
जैनों की दूसरी बहुमूल्य देन है--अहिंसा। जैनों की अहिंसा के ही प्रभाव के कारण वैदिक यज्ञों में होने वाली हिंसा पूर्णतया बन्द हो गयी और यज्ञ में पशु के स्थान पर आटे से बनाए गये पशु का उपयोग किया जाने लगा। इस विषय में तमिल कवियों ने जैनों से प्रेरणा ग्रहण की और अतिशय घृणा दर्शाने के लिए तमिल साहित्य से उद्धरण दिए गये; क्योंकि द्रविड़ों का बहुभाग मांसभक्षी था।
दक्षिण भारत में बृहत् परिमाण में मूर्तिपूजा और मन्दिरों का निर्माण भी जैन प्रभाव की देन है। जैन लोग अपने तीर्थकरों की मूर्तियाँ बनवाते थे और विशाल मन्दिरों में प्रतिष्ठित करके उनकी पूजा करते थे। पूजा की यह शैली बड़ी प्रभावक और आकर्षक है, अतः उसका तत्काल अनुकरण किया गया। __ जैन ग्रन्थकारों ने प्रारम्भ से ही तमिल देश की साहित्यिक प्रवृत्तियों में भाग लिया था। ऐसा भी मत है कि संगम नाम उसकी रचना तथा तमिल देश में जैनधर्म के प्रस्थापक जैनाचार्यों की ही देन है, क्योंकि जैनधर्म की साधु संस्था संघ, गण आदि के रूप में प्रारम्भ से ही बड़ी सुव्यवस्थित थी। उसी अनुभव का उपयोग जैनाचार्यों ने संगम की रचना में किया। संघ और संगम नामों में भी साम्य है।
तोलकाप्पियम्
तमिल जैन साहित्य का समृद्ध भंडार है, यहाँ कुछेक प्रमुख रचनाओं का उल्लेख आवश्यक लगता है। यह तमिल भाषा का सबसे प्रचीन व्याकरण ग्रन्थ है। यह एक जैन विद्वान् की रचना माना जाता है। इस ग्रन्थ में 3 बड़े अध्याय और प्रत्येक अध्याय में 9 विभाग हैं। मरवियल विभाग में तोलकाप्पियम् ने घास और वृक्ष के समान जीवों को एकेन्द्रिय, घोंघे के समान जीवों को दोइन्द्रिय, चींटी के समान जीवों को त्रीइन्द्रिय, केकड़े के समान जीवों को चौइन्द्रिय, बड़े प्राणियों के समान जीवों को पंचेन्द्रिय और मनुष्य के समान जीवों को छः इन्द्रिय कहा है। जीवों का यह विभाग सभी जैन ग्रन्थों में पाया जाता है। कुरल
तमिल जैन साहित्य :: 819
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