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वलयमनय्यनित्तुद्रुमनां निनगित्तेनिद्रेवुदण्ण नी नीलिद लतांगिगं धरेगमाटिसिदंदु नेगळ्ते मासदे॥
आदिपुराण -14-128 [सैनिकों की तलवारों में विहार करने वाली राजलक्ष्मी तुम्हारी छाती में शाश्वत रूप से खड़ी रहे। इस राज्य को पिताश्री ने मुझे दिया था। मैं उसे तुम्हें दे रहा हूँ। तुम्हारी पत्नी व राज्य को अगर चाहा तो क्या मेरे यश पर कलंक नहीं लगेगा?]
पम्प के बाद कवि हस्तिमल्ल ने 'पूर्वपुराण' (गद्य-1250 ई.), शान्तकीर्ति ने 'पुरुदेवचरित' (सांगत्य-1725 ई.) बोरमण्ण ने 'आदिपरमेश्वर चरित' (यक्षगान1750 ई.), वर्धमान पंडित ने 'पुरुदेव चरित' (गद्य-1888 ई.) काव्यों में ऋषभनाथ के चरित चित्रित किये हैं। __ दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ के चरित का चित्रण कवि रन्न (993 ई.) के 'अजित तीर्थंकर पुराण तिलक' काव्य में किया गया है। काव्य में सगर चक्रवर्ती का कथानक अत्यन्त आकर्षक रूप में किया गया है।
आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ के चरित का चित्रण कवि अग्गळ ने 'चन्द्रप्रभ पुराण' में, (चम्पू-1210 ई.) कवि दोड्ड़य्य ने 'चन्द्रप्रभ चरिते' में (सांगत्य-1550 ई.) तथा नौवें तीर्थंकर पुष्पदन्त के चरित का चित्रण दूसरे गुणवर्म ने 'पुष्पदन्त पुराण' (चम्पू-1200 ई.) में किया है। ___ 14वें तीर्थंकर अनन्तनाथ के चरित को कविचक्रवर्ति जन्न ने 'अनन्तनाथ पुराण' (चम्पू 1230 ई.) में प्रस्तुत किया है। 14 आश्वासों में विभाजित काव्य में वसुषेण और सुनन्दा का उपाख्यान श्रृंगार व करुण रसपूर्ण होकर अत्यन्त जनप्रिय है।। ____ 15वें तीर्थंकर धर्मनाथ का चरित चित्रण बाहुबलि पंड़ित के चम्पूकाव्य 'धर्मनाथ पुराण' (1352 ई.) और मधुर कवि की कृति में किया गया है।
16वें तीर्थंकर शान्तिनाथ का चरित कविचक्रवर्ति पोन्न के 'शान्तिपुराण' (चम्पू10वीं सदी) में चित्रित है। इसमें तीर्थंकर के 12 पूर्व भवों का वर्णन किया गया है। इस काव्य का चारित्रिक दृष्टि से भी महत्त्व है। दानचिन्तामणि अत्तिमब्बे के पिता मल्लपय्य
और चाचा पुन्नमय्य के बारे में विवर प्रस्तावित है। 1235 में कमल भव द्वारा रचित 'शान्तीश्वर पुराण' (चम्पू) और शान्तकीर्ति मुनि के 'शान्तीश्वर चरिते' (सांगत्य 1732 ई.) में भी भगवान शान्तिनाथ का चरित उपलब्ध है।
अभिनव पम्प के नाम से प्रख्यात कवि नागचन्द्र ने (1100 ई.) 'मल्लिनाथ पुराण' में 19वें तीर्थंकर मल्लिनाथ का चरित्र चित्रण किया है। इस काव्य में कवि ने शान्तरस का उल्लेख करके सभी जैन पुराणों के अंत:स्रोत को शब्द रूप से अभिव्यक्त किया है -
निनगे रसमोंदे शांतमे जिनेंद्र मनया रसांबुनिधियोळगा
कन्नड़ जैन साहित्य :: 811
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