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रचयिता राष्ट्रकूट सम्राट अमोघवर्ष नृपतुंग के आस्थानकवि श्रीविजय था, जो जैन था। कविराजमार्ग एक लाक्षणिक ग्रन्थ है, उसमें तत्कालीन और पूर्व के गद्य व पद्य कवियों के नाम और उनके काव्यों से चुने हुए कुछ लक्ष्य पद्य भी सम्मिलित हैं। उनमें से कुछ पद्य जैन रामायण व हरिवंश से चुने हुये हैं। इस ग्रन्थ में उल्लिखित दुर्विनीत, (गंगवंश के नरेश) तुंबलूरु आचार्य, सैगोट्ट शिवमार (गंग राजा) के नाम, काव्यों के नाम, कुछ पद्य उत्तरकालीन काव्यों में और शिलालेखों में भी मिलते हैं । गुणवर्म (1) ने शूद्रक व हरिवंश नामक दो काव्यों की रचना की थी; व हरिवंश 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ का चरित है।
साहित्यिक इतिहासकारों ने 9 से 12वीं सदी तक की अवधि को 'जैनयुग' मान लिया है। उस युग के पम्प-पोन्न और रन्न ‘कवि रत्नत्रय' माने गये हैं। उनके नाम और काव्य के महत्त्व को उत्तरकालीन सभी जैन और कई अजैन कवियों ने अपने काव्यों के आरम्भ में गौरवपूर्वक स्मरण किये हैं। ___ अध्ययन की दृष्टि से कन्नड़ जैन वाङ्मय को दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैंसृजनशील और सृजनेतर। सृजनशील कृतियों में कथावस्तु, कवि की प्रतिभा, सरस शैली, शब्द कौशल की प्रधानता होती है। सृजनेतर वर्ग में तत्त्वशास्त्र, विज्ञान, गणित, आचार सम्बन्धी साहित्य तथा टीका ग्रन्थ, अध्ययन ग्रन्थ सम्मिलित होते हैं।
सृजनशील साहित्य में प्रमुख हैं-पुराण, चरिते और कथाग्रन्थ। जैन पुराणों के कुछ विशिष्ट लक्षण और अनन्यता इस प्रकार हैं-पाणिनि के अनुसार पुराण पुराने विचारों को बतलाने के कारण 'पुरा भवम् ' है, फिर भी शाश्वत तत्त्वों को कहलाने के कारण नित्यनूतन है। पुराण अत्यन्त संकीर्ण वास्तविकता है। अतीत के चित्रण के साथ-साथ वे भविष्य को भी सूचित करते हैं। पुराण में इतिहास, ऐतिह्य, साहित्यिक सरसता सम्मिलित है। प्रत्येक कृति में कुछ अंश प्रधान दिखाई देता है। भारतीय पुराणों में धार्मिक परिवेष, साहित्यिक गुणों का आधिक्य होता है। सृष्टि, प्रकृति के नियम, मानव की साधना, उसकी जय-पराजय, ये सब पुराणों के विषय हैं। धरती, आकाश, काल, जीवियाँ ये सब पुराणों के पात्र हैं। इतिहास, भूगोळ, खगोळ, कालगणना, जीवविकास क्रम, पाप-पुण्य, पुनर्जन्म, मोक्ष आदि का विवरण किया जाता है। ___ ये लक्षण कन्नड़ जैन पुराणों में भी दिखाई देते हैं। यहाँ मानव व उसकी साधना केन्द्र-वस्तु है। मानव जीवन का उतार-चढ़ाव, आत्मा का रत्नत्रय पथ में प्रयाण, कर्मनिर्जरा तथा उनसे मुक्ति प्राप्ति करने का दिव्य सन्देश इन काव्यों में मिलता है। पुराणों के नायक तीर्थंकर, शलाकापुरुष होते हैं। कथानक के साथ-साथ धर्म तत्त्व का विस्तृत विवरण भी किया जाता है।
काल व लोक वर्णन से जैन पुराणों का आरम्भ होता है। कुलकर, समवसरण मंडप, अणुव्रत-महाव्रत, तप-ध्यान, पंचकल्याणक, अनुप्रेक्षा का सन्दर्भानुसार विवरण किया जाता है। जिनसेनाचार्य (9वीं सदी) अपने महापुराण में पुराणों के 8 अवयव होना
कन्नड़ जैन साहित्य :: 809
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