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के आगे जिनबिम्ब की स्थापना, अलग स्थान-सूचक वेदी, तीन कटनी ऊपर अण्डाकार शिखर उसमें ध्वजा, किंकिणी एवं शिखर के ऊपरी भाग में जिनेन्द्र-बिम्ब शोभायमान कर प्रदक्षिणा और सरस्वती-भण्डार की रचना
करना चाहिए। ये मन्दिर दो खण्ड, तीन खण्ड, चार खण्ड आदि के बनाएँ, किन्तु शिखर, ध्वजा आदि ऊपर के खण्ड में बनावें। मन्दिर-निर्माण वास्तुशास्त्र के विपरीत बनाये जाने पर अनर्थ का योग बनता है।
चैत्यालयों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है1. सामान्य चैत्यालय, 2. गृह-चैत्यालय
1. सामान्य चैत्यालय-वे चैत्यालय हैं, जो नगर, ग्राम, तीर्थ-क्षेत्र, नदी, पर्वत आदि पर बनाये जाते हैं, ये कृत्रिम और अकृत्रिम होते हैं। अकृत्रिम जिनालय तीनों लोकों में 85697481 हैं एवं कृत्रिम जिनालय असंख्यात होते हैं।
2. गृह-चैत्यालय-वे चैत्यालय हैं, जो देव, विद्याधर और मनुष्यों के निवासस्थानों में होते हैं। अकृत्रिम गृह-चैत्यालय चारों प्रकार के देवों के भवनों, आवासों,विमानों में शाश्वत एवं असंख्यात होते हैं। कृत्रिमचैत्यालय विद्याधर और मनुष्यों के गृहों में होते हैं, जिनेन्द्र-भक्त सेठ के सतखण्डा भवन के ऊपर पार्श्वनाथ भगवान का गृहचैत्यालय था। बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ भगवान् के शासन काल में सप्त ऋषियों ने अंगुष्ठप्रमाण जिनप्रतिमा अपने घरों में स्थापन करने का उपदेश दिया था।' गृह-चैत्यालय एवं प्रतिमा पूर्व या उत्तरमुखी करना श्रेष्ठ है। गृह में प्रवेश करते हुए वाम भाग की ओर शल्य रहित डेढ़ हाथ ऊँची भूमि पर देवस्थान बनाना चाहिए, नीची भूमि पर बनाने से वह सन्तान के साथ निचली-निचली अवस्था को प्राप्त होता जाएगा अर्थात् उसकी उन्नति बाधित हो जाएगी-ऐसा शास्त्रोलेख है । गृह-चैत्यालय में पुष्पक विमान आकार सदृश लकड़ी का गृह मन्दिर बनाना चाहिए। उपपीठ, पीठ और उसके ऊपर समचौरस फर्श आदि बनाना चाहिए। चारों कोणों पर चार स्तम्भ, चारों दिशाओं में चार द्वार, चार तोरण, चारों ओर छज्जा और कनेर के पुष्प जैसा पाँच शिखर (एक मध्य में गुम्बज उसके चारों कोनों पर एक-एक गुमटी) करना चाहिए। एक द्वार, दो द्वार अथवा तीन द्वार वाला और एक शिखर वाला भी बना सकते हैं। गर्भगृह सम चौरस और गर्भगृह के विस्तार से सवाई ऊँचाई होना चाहिए। गृह-चैत्यालय के शिखर पर ध्वजदण्ड कभी भी नहीं रखना चाहिए
स्तूप - जैन वास्तुकला के क्षेत्र में स्तूप का स्थान सर्वप्रथम रहा प्रतीत होता है। वस्तुतः जैन पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार भी मानवीय सभ्यता के इतिहास में मनुष्य द्वारा निर्मित
716 :: जैनधर्म परिचय
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