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जयमाला और आशीर्वचन। स्थापना में स्तुत्य या पूज्य का आह्वानन करके उसे अपने हृदय में स्थापित किया जाता है। अष्टक में उसी पूज्य की जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, फल-इन आठ द्रव्यों से पृथक्-पृथक् पूजा करने के बाद इन सबका मिश्रण रूप अर्घ्य चढ़ाकर पूजा की जाती है। 'पंचकल्याणक' वाला भाग केवल 24 तीर्थंकरों की पूजा के लिए ही प्रयोग किया जाता है जिसमें गर्भकल्याणक, जन्मकल्याणक, तपकल्याणक, ज्ञानकल्याणक और मोक्षकल्याणक-इन पंचकल्याणकों से युक्त तीर्थंकर के पृथक्-पृथक् पाँच अर्घ्य चढ़ाए जाते हैं। 'जयमाला' पूजा का बड़ा ही महत्त्वपूर्ण भाग होता है। इसमें पूज्य का गुणानुवाद तो होता ही है, पर अनेक बार उनके जीवनचरित्र आदि का भी सुन्दर वर्णन उपलब्ध होता है। कभी-कभी जैनदर्शन के तत्त्वज्ञान का गूढ़ व्याख्यान भी इन जयमालाओं में उपलब्ध होता है यथा
"सुमति तीन सौ छत्तीसों, सुमति भेद दरशाय। सुमति देहु विनती करों, सुमति विलम्ब कराय॥
पंच परावरतन हरन, पंच सुमति सित दैन।
पंच लब्धि दातार के, गुण गाऊँ दिन रैन॥" कहने की आवश्यकता नहीं कि उक्त दोहों का साहित्यिक सौन्दर्य भी मनोमुग्धकारी है। पूजा के अन्तिम भाग 'आशीर्वचन' में भक्तों एवं जगत् के सभी जीवों के कल्याण की शुभकामना की जाती है। जैन भक्तिकाव्य में पूजाकाव्य का स्थान भी बड़ा महत्त्वपूर्ण है। लाखों श्रावक-श्राविकाएँ प्रतिदिन अनिवार्य रूप से जैनमन्दिरों में जाकर शुद्ध वस्त्र पहनकर, अष्ट द्रव्य से थाल सजाकर उत्साहपूर्वक गा-गाकर इन पूजाओं को पढ़ते हैं। डॉ. दयाचन्द जैन साहित्याचार्य की कृति 'जैन पूजा काव्य : एक चिन्तन' आदि ग्रन्थ इस विषय में बड़े सहायक सिद्ध होगे। ___जैन-पूजाकाव्य के अन्तर्गत वृहत्पूजाओं के निर्माण की भी परम्परा प्रचलित रही है, जिसे 'मण्डलविधान' के नाम से जाना जाता है। जैन कवियों ने सैकड़ों मण्डलविधान अलग-अलग तरह के लिखे हैं, इनमें से अनेक विधान तो ऐसे हैं जिनका पाठ एक दिन में पूरा हो ही नहीं सकता, उसके लिए कई दिनों तक कुछ को में आठ-दस दिनों तक पूजा चलनी होती है। कतिपय सुप्रसिद्ध जैन पूजन-मण्डलविधानों के नाम इस प्रकार हैं
सिद्धचक्रमण्डल विधान ___ 2. इन्द्रध्वजमण्डल विधान ____3. यागमण्डल विधान
4. चौंसठ ऋद्धिमण्डल विधान 770 :: जैनधर्म परिचय
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