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SAIT अथवा जीवन के शाश्वत व सार्वभौमिक मूल्यों का उपस्थापन किया गया है। जैन परम्परा के संस्कृत सूक्ति-काव्यों में आचार्य गुणभद्र द्वारा (ई. 9वीं शती) विरचित 'आत्मानुशासन', आचार्य शुभचन्द्र द्वारा ( 12वीं शती) रचित 'ज्ञानार्णव', आचार्य अमितगति द्वारा (वि. 11वीं शती) रचित 'सुभाषितरत्नसन्दोह', अर्हद्दास द्वारा (ई. 13वीं शती) रचित ' भव्यजनकण्ठाभरण' तथा सोमप्रभ द्वारा ( 13वीं शती ई.) रचित 'सूक्तिमुक्तावली' काव्य आदि महत्त्वपूर्ण हैं |
जैन आचार्यों ने संस्कृत में सन्देश काव्यों या दूतकाव्यों की भी रचना कर साहित्यभण्डार को समृद्ध किया है। इन रचनाओं की विशेषता यह है कि इनमें श्रृंगार रस की जगह शान्त रस को प्रधानता दी गयी है और अधिकांशतः पार्श्वनाथ व नेमिनाथ आदि के जीवन-वृत्तों को आधार बनाया गया है। ऐसे जैन सन्देश काव्यों में कवि विक्रम (13-14वीं शती) कृत 'नेमिदूत', महेन्द्रप्रभसूरि के शिष्य कवि मेरुतुंग (द्वितीय) (ई. 14 - 15वीं शती) कृत 'जैनमेघदूत', वादिचन्द्रसूरि ( 17वीं शती) कृत 'पवनदूत', विनयविजय गणी ( 18वीं शती) द्वारा रचित 'इन्दुदूत' तथा महोपाध्याय मेघविजय (वि. 18वीं शती) द्वारा रचित 'मेघदूतसमस्यालेख' आदि महत्त्वपूर्ण हैं। वि. 15वीं शती में चारित्रसुन्दरगणी द्वारा मेघदूत के अन्तिम चरणों को लेकर समस्यापूर्ति के रूप में रचा गया 'शीलदूत' नामक दूतकाव्य भी कविप्रतिभा का परिचायक है ।
गद्यकाव्य व कथासाहित्य
कथा व आख्यान प्रधान संस्कृत काव्यों की रचना भी जैन आचार्यों ने पर्याप्त मात्रा में की है । कवि-जगत् में गद्य काव्य को कवियों की प्रतिभा की कसौटी माना जाता है। जैन परम्परा में नैतिक उपदेश से पूर्ण व वैराग्यवर्धक तथा कर्म - सिद्धान्त को पुष्ट करने वाली कथाओं का साहित्य भण्डार भी अति समृद्ध रहा है। कुछ विशिष्ट कृतियों का निर्देश यहाँ प्रस्तुत है ।
संस्कृत गद्यात्मक आख्यानों में धनपाल कवि (10वीं शती ई.) रचित 'तिलकमंजरी', आचार्य वादीभसिंह (ओडवदेव) रचित 'गद्यचिन्तामणि' (11वीं शती लगभग) आदि प्रमुख हैं। सिद्धर्षि कृत 'उपमितिभवप्रपंचकथा' ( 10वीं शती ई. प्रारम्भ) संस्कृत-गद्यकथा का श्रेष्ठ उदाहरण है। इसके अतिरिक्त, अमरसुन्दर (वि. 15वीं शती) कृत 'अंबडचरित्र', ज्ञानसागरसूरि ( 15वीं शती) कृत 'रत्नचूडकथा', जिनकीर्ति ( 15वीं शती) कृत 'चम्पक श्रेष्ठिकथानक', जयविजय के शिष्य मानविजय (16- 17वीं शती) कृत 'पापबुद्धि- धर्मबुद्धिकथा' (कामघटकथा) आदि संस्कृत कथा साहित्य की श्रीवृद्धि करने वाली कृतियाँ हैं। संस्कृत पद्यों में रचित हरिषेण (शक सं. 853) द्वारा रचित 'कथाकोष' भी कथाओं का विपुल स्रोत है। अन्य कथा - संग्रहात्मक संस्कृत कृतियों
804 :: जैनधर्म परिचय
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