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प्रसिद्ध हैं। इसमें कुल 143 संस्कृत - छन्दों में ऋषभादि चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति की गयी है। स्तुति के माध्यम से भी वस्तुतः जैनचिन्तन को और इसके साथ ही साथ जैनचिन्तन के मूलाधार तत्त्व अनेकान्त - स्याद्वाद की भी यहाँ (Deepness Thought) अद्भुत व्याख्याएँ हैं ।
आचार्य समन्तभद्र के इस स्तोत्र का परवर्ती जैन भक्तिकाव्य पर बड़ा प्रभाव पड़ा है । पच्चीसों कृतियाँ तो 'स्वयम्भूस्तोत्र' के नाम से ही लिखी गयी हैं। इसके अतिरिक्त इस स्तोत्र के विषय एवं शैली का अनुकरण करते हुए तो विविध भाषाओं और विविध कालखण्डों में आज तक शताधिक कृतियों की रचना हुई है।
आचार्य समन्तभद्र के 'स्वयम्भूस्तोत्र' के अतिरिक्त संस्कृत - जैन - स्तोत्र - साहित्य में कतिपय निम्नलिखित स्तोत्र अत्यधिक प्रचलित हैं
1. भक्तामर स्तोत्र ( आचार्य मानतुंग, सातवीं शती)
2. कल्याणमन्दिरस्तोत्र ( आचार्य सिद्धसेन अपर नाम कुमुदचन्द्र, सातवीं शती) 3. विषापहारस्तोत्र ( महाकवि धनंजय, आठवीं शती)
4. जिनसहस्रनामस्तोत्र ( आचार्य जिनसेन, आठवीं शती) 5. एकीभावस्तोत्र ( आचार्य वादिराजसूरि, ग्यारहवीं शती)
6. पार्श्वनाथस्तोत्र ( कविवर द्यानतराय, अठारहवीं शती)
7. महावीराष्टकस्तोत्र ( कविवर पं. भागचन्द, उन्नीसवीं शती)
इन स्तोत्रों का हजारों जैन साधक, सामान्य जन भी कण्ठस्थ हो जाने से प्रायः प्रतिदिन पाठ करते हैं और इसलिए जैन भक्ति - काव्य-संग्रह की प्रायः प्रत्येक पुस्तक में संकलित है। इन स्तोत्रों पर संस्कृत हिन्दी आदि भाषाओं में टीकाएँ तो लिखी ही गयी हैं, उनका हिन्दी, मराठी, कन्नड़, गुजराती, अँग्रेजी आदि प्राय: सभी बहुप्रचलित भाषाओं में गद्यानुवाद और पद्यानुवाद भी किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त इनकी मधुर स्वरों में ऑडियो-वीडियो कैसेट्स और सीडीज भी बनी हैं।
इन स्तोत्रों की लोकप्रियता का एक प्रमाण यह है कि सामान्य लोग इनका असली नाम तक नहीं जानते, फिर भी इन्हें अपने ही रखे हुए नाम के द्वारा बहुत अधिक पढ़तेसुनते हैं। जैसे- 'भक्तामर स्तोत्र' का वास्तविक नाम तो 'ऋषभदेव-स्तोत्र' है, किन्तु उसका प्रथम पद ‘भक्तामर ' है - 'भक्तामर - प्रणत- मौलि-मणि - प्रभाणाम्...', अत: उसका नाम जनसाधारण में 'भक्तामर स्तोत्र' ही प्रचलित हो गया है। इसी प्रकार देवागमस्तोत्र, कल्याणमन्दिर स्तोत्र और एकीभाव स्तोत्र का भी मूल नाम तो क्रमशः आप्तमीमांसा, पार्श्वनाथस्तोत्र और चतुर्विंशतितीर्थंकरस्तोत्र है, किन्तु जनसाधारण में उनके नाम उनके प्राथमिक पदों के आधार पर ही उपर्युक्तानुसार पड़ गये हैं। ऐसी ही स्थिति और भी अनेक स्तोत्रों की है।
उक्त सभी जैन स्तोत्रों का मूलतः अध्ययन करने के लिए विभिन्न स्थानों से
768 :: जैनधर्म परिचय
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