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ने 'अष्टशती' एवं आचार्य विद्यानन्दि ने 'अष्टसहस्त्री' व 'आप्तपरीक्षा' आदि अनेक महान ग्रन्थों की रचना की ।
मंगलाचरण के अतिरिक्त भक्तियों के नाम से भी जैनवाड्मय में विशाल भक्तिकाव्य रचा गया है। इनमें आचार्य कुन्दकुन्द ( प्रथम शताब्दी) और आचार्य पूज्यपाद (पाँचवीं शताब्दी) जैसे धुरन्धर आचार्यों की भक्तियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। आज भी हजारों साधु और श्रावक इन भक्तियों का नित्य पाठ करते हैं । भावगाम्भीर्य और शिल्प - दोनों ही दृष्टियों से ये भक्तियाँ सम्पूर्ण भारतीय भक्ति काव्य में अपना बेजोड़ स्थान रखती हैं ।
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इन भक्तियों के शीर्षक इस प्रकार हैं- सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति, चारित्रभक्ति, योगिभक्ति, निर्वाणभक्ति, आचार्यभक्ति, पंचमहागुरुभक्ति, वीरभक्ति, तीर्थंकरभक्ति, शान्तिभक्ति, समाधिभक्ति, नन्दीश्वरभक्ति और चैत्यभक्ति ।
आचार्य कुन्दकुन्द की भक्तियाँ प्राकृत भाषा में हैं, जबकि आचार्य पूज्यपाद की भक्तियाँ संस्कृत में । आचार्य कुन्दकुन्द और आचार्य पूज्यपाद के अतिरिक्त कतिपय अन्य आचार्यों ने भी कुछ भक्तियाँ लिखी हैं । जैसे- श्रुतसागर सूरि ( 16वीं शती) की सिद्धभक्ति ।
मंगलाचरण और भक्तियों के अतिरिक्त 'स्तोत्र' के नाम से भी विशाल जैनभक्तिकाव्य उपलब्ध है। जैन स्तोत्र - साहित्य का प्रारम्भ वैसे तो प्राकृतभाषा में हो चुका था और 'जयतिहुअण', 'उवसग्गहरं', 'भयहरं' आदि अनेक स्तोत्रों की रचना हो चुकी थी, परन्तु संस्कृत भाषा में आकर तो जैन स्तोत्र साहित्य का अद्भुत विकास हुआ। डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री के अनुसार संस्कृत भाषा में लगभग 1000 से अधिक जैन स्तोत्र लिखे गये ।
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संस्कृत - जैन- स्तोत्र - साहित्य के आद्यरचनाकार आचार्य समन्तभद्र (दूसरी शताब्दी) के माने जाते हैं। आचार्य समन्तभद्र के स्तोत्र जैन भक्तिकाव्य के समूचे दर्शन को बड़े ही स्पष्ट शब्दों में और तार्किक रीति से प्रस्तुत करने में अत्यन्त समर्थ हैं। स्तुति, स्तुत्य, स्तोता, स्तुतिफल, स्तुतिविधि आदि सभी विषयों पर आचार्य समन्तभद्र ने बड़े ही सटीक विचार अपने स्तोत्रों में अभिव्यक्त किए हैं। भाव एवं कला दोनों ही दृष्टियों से आचार्य समन्तभद्र के स्तोत्र बड़े उत्कृष्ट हैं ।
आचार्य समन्तभद्र के इन स्तोत्रों के सम्बन्ध में डॉ. प्रेमसागर ने लिखा है- " आचार्य समन्तभद्र के 'स्वयम्भू-स्तोत्र' तथा 'स्तुति - विद्या' समूचे भारतीय भक्ति - साहित्य के जगमगाते रत्न हैं। हृदय की भक्तिपरक ऐसी कोई धड़कन नहीं, जो इनमें सफलता के साथ अभिव्यक्त न हुई हो । भाव और कला का ऐसा अनूठा समन्वय भारत के किसी अन्य स्तोत्र में दृष्टिगोचर नहीं होता है ।"
आचार्य समन्तभद्र के स्तोत्रों में 'स्वयम्भूस्तोत्र' या 'वृहत्स्वयम्भूस्तोत्र' सर्वाधिक
भक्तिकाव्य
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