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स्तोत्रों में स्तुतिकार अपने भक्तिपूरित हृदय को आराध्य देव के समक्ष समर्पित करते हुए प्रतीत होते हैं। इनमें भक्ति, दर्शन व अध्यात्म की त्रिवेणी प्रवाहित है। उपास्य की महत्ता, आत्म-निवेदन तथा कहीं-कहीं अभीष्ट कार्य को चमत्कारिक रूप से सिद्ध कराने की आकांक्षा भी प्रकट हुई देखी जाती है। भक्ति भावना एवं रागात्मक वृत्तियों का उदात्तीकरण इनमें अद्भुत रूप से दृष्टिगोचर होता है। वैदिक परम्परा में विष्णुसहस्रनामस्तोत्र काफी लोकप्रिय रहा है। जैन परम्परा में भी भक्तिवश जिनसहस्रनाम स्तोत्रों की रचना हुई है। प्रथमतः आचार्य जिनसेन द्वितीय (9वीं शती) कृत 'जिनसहस्रनाम स्तोत्र' है, जिसमें जिनेन्द्र के 1008 नामों की गणना हुई है और नाना विशेषणों से परमात्मा की स्तुति की गयी है। इसी क्रम में पं. आशाधर (13वीं शती), विनयविजय उपाध्याय (17वीं शती) आदि कवियों द्वारा रचित जिनसहस्रनाम-स्तोत्र भी प्राप्त होते हैं।
पौराणिक शैली की सर्वप्रथम संस्कृत रचना रविषेण (ई. 7वीं) द्वारा विरचित 'पद्मचरित' प्राप्त होती है। यह 123 पर्यों में विभक्त है और प्रायः (18 हजार से अधिक) अनुष्टुप् छन्दों में यह निबद्ध है। पूर्ववर्ती कवि विमलसूरि कृत प्राकृत 'पउमचरिउ' (ई. 1-4 शती अनुमानित) का प्रभाव इसमें स्पष्ट देखा जा सकता है। दूसरी पौराणिक संस्कृत रचना जिनसेन-रचित (ई. 8वीं शती) 'हरिवंशपुराण' में हरिवंशीय तीर्थंकर नेमिनाथ का चरित वर्णित है। इसके बाद आचार्य जिनसेन (ई. 9वीं शती) तथा उनके शिष्य गुणभद्र (ई. 9वीं शती) द्वारा क्रमशः रचित 'महापुराण' है, जो आदिपुराण व उत्तरपुराण इन दो रूपों में विभक्त है। आदिपुराण में 47 पर्व और 1500 श्लोक हैं, जब कि उत्तरपुराण में 29 पर्व तथा 8 हजार श्लोक हैं। आदिपुराण में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का तथा उत्तरपुराण में शेष 23 तीर्थंकरों का चरित वर्णित है। यह कृति जैनपुराणकोश जैसी है, क्योंकि इसमें प्रसंगवश समस्त तत्कालीन राजाओं व प्रमुख चरितनायकों (63 शलाकापुरुषों), महापुरुषों व उल्लेखनीय व्यक्तित्वों से जुड़ी कथाएँ समाहित हो गयी हैं। भाषा व शैली का सौष्ठव तथा अलंकारादि काव्यशास्त्रीय विशेषताओं से यह पूर्ण है। तीर्थंकर व मुनिराजों के धर्मोपदेश के रूप में जैन-तत्त्वज्ञान का यह कोश ही बन पड़ा है। मल्लिषेण (11वीं शती) तथा श्वेता. आचार्य मल्लिभूषण (ई. 13) कृत महापुराण भी प्राप्त होते हैं। इसी क्रम में आचार्य हेमचन्द्र (12वीं शती) द्वारा रचित 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' नामक पौराणिक काव्य भी उल्लेखनीय है, जिनमें 10 पर्यों में तीर्थंकर आदि तिरेसठ शलाकापुरुषों (महापुरुषों) का चरित निबद्ध किया गया है।
पाण्डवों से सम्बन्धित अनेक पुराण रचे गये हैं, जिनके कर्ता मलधारी देवप्रभसूरि (ई. 12वीं), आचार्य शुभचन्द्र (ई. 16वीं शती), तथा सकलकीर्ति (15वीं शती ई.) आदि उल्लेखनीय हैं।
इसी परम्परा में मुनि श्रीचन्द्र (वि. सं. 11वीं) द्वारा रचित पुराणसार तथा दामनन्दि
800 :: जैनधर्म परिचय
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