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प्रकाशित और स्तोत्र-संग्रह उसके मूल पाठों के अतिरक्ति निम्न जिनवाणी-संग्रहों को भी देखना चाहिए। यथा1. जैन स्तोत्र समुच्चय, सम्पादक-मुनि चतुरविजय, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई,
वि.सं. 1984 जैन स्तोत्र पाठ संग्रह, सम्पादक-ब्र. धर्मचन्द्र जैन, प्रकाशक-भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत्परिषद्, गुलाबवाटिका, लोनी रोड, दिल्ली, सन् 2003 ज्ञानपीठ पूजांजलि, सम्पादक-डॉ. ए.एन. उपाध्ये एवं पं. फूलचन्द्र शास्त्री,
भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली 4. पूजन-पाठ-प्रदीप, मूल सम्पादक-पं. हीरालाल जैन कौशल, प्रकाशक
शैली, श्री पार्श्वनाथ दि. जैन मन्दिर, पुरानी सब्जी मण्डी, दिल्ली-7 5. वृहज्जिनवाणी संग्रह, सम्पादक-डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल, टोडरमल स्मारक
ट्रस्ट, जयपुर उक्त स्तोत्रों में भी प्रसिद्धि की दृष्टि से आचार्य मानतुंग का 'भक्तामर स्तोत्र' विशेष रूप से विख्यात है; क्योंकि इसे जैनधर्म के दिगम्बर और श्वेताम्बर-दोनों ही सम्प्रदायों में बड़ी भक्ति के साथ पढ़ा-पढ़ाया जाता है। इसमें श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुसार 44 और दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार 48 वसन्ततिलका छन्द हैं, जो भावविभोर करने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। उदाहरणार्थ निम्नलिखित छन्द देखिए
"निधूमवर्तिरपवर्जित-तैलपूरः
कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रकटीकरोषि। गम्यो न जातु मरुतां चलिताचलानां
दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ जगत्प्रकाशः।।6॥" पद्यानुवाद इस तरह है
धूमरहित बाती गत नेह, परकाशै त्रिभुवन-घर एह।
वातगम्य नाहीं परचण्ड, अपर दीप तुम बलौ अखण्ड। मंगलाचरण, भक्ति और स्तोत्रों के अतिरिक्त जैन भक्तिकाव्य में पूजाओं का भी बड़ा भण्डार है। सभी तीर्थंकरों की तो पृथक्-पृथक् और सामूहिक रूप से अनगिनत पूजाएँ लिखी ही गयी हैं, सिद्ध भगवन्तों, सामान्य केवलियों, विविध तीर्थ-क्षेत्रों, जिनवाणी या सरस्वती, निर्ग्रन्थ मुनिराजों और दशलक्षण, सोलहकारण, रक्षाबन्धन आदि पौं तक की सैकड़ों पूजाएँ हैं। देव-शास्त्र-गुरु, पंचपरमेष्ठी आदि नामों से सामूहिक पूजाएँ भी बड़ी संख्या में जैन कवियों ने लिखी हैं। जैन भक्ति काव्य में उपलब्ध प्राकृत, संस्कृत व हिन्दी की सभी जैन पूजाओं की कुल संख्या हजारों में होगी। प्रत्येक तीर्थंकर पूजा के मुख्यत: 5 भाग होते हैं-स्थापना, अष्टक, पंचकल्याणक,
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