________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रहा कि यहाँ जर्मन भाषा के बिना काम चलना मुश्किल था। अंग्रेजी माध्यम भाषा ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा ही नहीं, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी भारतीयों के प्रव्रजन की अधिक संख्या में कारण बनी।
ध्यान से देखें तो जर्मनी भारतीयों के प्रव्रजन का इस तरह केन्द्र नहीं रहा, जिस तरह उपर्युक्त अन्य देश रहे। 1970 से 1990 के दशकों में प्रमुख रूप से जर्मन मूल के कुर्त तित्ज़, हर्सन, कुह्न, मार्कुस मिशनर जैनधर्म के प्रति आकर्षित हुए। इन्होंने जैनधर्म का अध्ययन ही नहीं किया, बल्कि जैनधर्म को जीवन में अपनाया भी। मार्कुस मिशनर ने एक जर्मन पत्रिका Jain-PFAD का प्रकाशन भी 1987 में किया अपनी जैन गतिविधियों को बढ़ाने के लिए 'जैन जर्मन अन्तर्राष्ट्रीय परिषद' की स्थापना भी वर्ष 1989 में की। परिषद का उद्देश्य जर्मन भाषा के माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जैनधर्म के सार्वभौमिक सिद्धान्तों को प्रसारित करना था, पर दुर्भाग्य से एक समय ऐसा आया, जब वे स्वयं इस जैन अन्तर्राष्ट्रीय परिषद से अलग हो गये और कालान्तर में जर्मन जैन पत्रिका का प्रकाशन भी रुक गया। कुर्त तित्ज़ ने महावीर पर जैनधर्म की ऐसी पुस्तक प्रकाशित की, जो जर्मन जनता के द्वारा बहुत सराही गयी। बात इतनी ही नहीं, जर्मन के एक राज्य के स्कूलों में भी इस पुस्तक के कुछ अंश पढ़ाए जाते हैं। कालान्तर में कुर्त तित्ज़ ने अंग्रेजी में भी जैनिज्म नाम से एक पुस्तक प्रकाशित की। अहिंसा धर्म के नाम से एक और महत्त्वपूर्ण रचना मोतीलाल बनारसीदास के माध्यम से अंग्रेजी में प्रकाशित की, जिसकी चर्चा भी समालोचकों के बीच खूब हुई और अन्त में 78 वर्ष की आयु में अपने ऑस्ट्रेलियाई घर में णमोकार मन्त्र का पाठ करते हुए शरीर छोड़ दिया। हर्मन कुल ऐसे व्यक्तित्व हैं, जो अनेक जैनाचार्यों के सम्पर्क में आये, और खासकर आचार्य आर्यनन्दी मुनिराज के सम्पर्क में और इन्होंने तत्त्वार्थसूत्र का आंशिक अनुवाद किया तथा दो अन्य पुस्तकें यथा –'कर्म स्वयं के भाग्य का निर्माता', 'ब्रह्मांड के केन्द्र की कुंजी' नामक पुस्तकें अंग्रेजी और जर्मन दोनों भाषाओं में प्रकाशित की। इन दोनों पुस्तकों का प्रचार-प्रसार भी खूब हुआ। इस आलेख के लेखक ने भी कील व फ्रेन्कफुर्त आदि विश्वविद्यालयों में जर्मन शाकाहार परिषद द्वारा आयोजित जैनधर्म विषयक अनेक व्याख्यान दिये। वर्तमान विद्वानों में रावर्ट जाइडन बोस भी ऐसे विद्वान हैं, जिन्होंने लगभग 15 वर्ष तक भारत में रहकर अध्ययन, अनुसन्धान किया और अब म्यूनिख विश्वविद्यालय में पढ़ा रहे हैं। इनकी एक पुस्तक 'जैनिज्म : आज और इसका भविष्य' भी महत्त्वपूर्ण है। इनके आलेख 'जैन स्प्रिट' पत्रिका में भी छपे हैं। यह भी सुना गया है कि इन्होंने अणुव्रत अंगीकार किये हैं तथा कुछ अंशों में साधक का जीवन जीना भी प्रारम्भ कर दिया है। वर्तमान में जर्मन लोगों में पेट्रा शिलर, रोबिन स्टेज, कोर्निल वावरिस्की, फ्रेडरिक वॉल्फ आदि ऐसे लोग हैं, जिन्होंने जर्मन वातावरण के अनुरूप अपने आचरण को जैन सीमाओं में बाँधकर जीना प्रारम्भ कर दिया है। ये सब ऐसे लोग हैं, जिन्होंने अनेक तीर्थक्षेत्रों के दर्शन भी किये हैं।
746 :: जैनधर्म परिचय
For Private And Personal Use Only