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पूजा और प्रवचन की श्रृंखला चलती है। सिल्वर स्प्रिंग के जैन मन्दिर में सन् 2011 में अठारह दिनों के लिए धर्म-वृद्धि की व्यवस्था की गई। इस मन्दिर में रहने की व्यवस्था है और 18 दिनों के लिए शुद्ध भोजन की भी व्यवस्था कराई गयी थी । सिल्वर स्प्रिंग और आसपास के कई वृद्ध-अवस्था के लोग इन पर्वों के दौरान मन्दिर में ही वास करते
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दशलक्षण और पर्यूषण पर्वों पर आये हुए विद्वानों और शास्त्रियों के सौजन्य से इस दौरान या कुछ दिन पहले और बाद बहुत सी जगह विधान और पाठ भी किए जाते हैं । अमेरिका में जैन रहन-सहन
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अमेरिका में बहुत से जैन अपने धर्म के नियमों का जहाँ तक सम्भव है, पालन करते हैं। भारत में जन्म लेकर यहाँ आकर बसने वाले जैन ज्यादातर शाकाहारी ही बने रहे, पर अमेरिका में जन्म लेकर वहीं पर बढ़ने वाले जैनों में शाकाहारी की मात्रा कुछ कम है। कुछ ही जैन परिवार हैं, जिनके घर पर प्याज और लहसुन नहीं बनता पर इन परिवार वालों का प्याज-लहसुन का पूरी तरह त्याग नहीं हो पाता, क्योंकि घर से बाहर ऐसा भोजन बड़ी मुश्किल से ही उपलब्ध होता है। रात्रि भोजन त्याग वाले तो शायद कुछ वृद्ध अवस्था के लोग रह गये हैं। ये लोग रिटायर होकर अमेरिका में बसे अपने बच्चों के साथ रहने के लिए आये और जीवन भर के लिये हुए नियमों का पालन कर रहे हैं ।
ज्यादातर जैन बच्चे हर शनिवार या रविवार को या हर दूसरे शनिवार या रविवार को जैन पाठशालाओं में जाकर अपने महान धर्म के बारे में सीखते हैं। पर जहाँ ये पाठशालाएँ उपलब्ध नहीं है, या कम बच्चों के साथ चल रही हैं, वहाँ जैन माता- 1 ता-पिता अपने बच्चों को हिन्दू संस्थाओं की कक्षाओं जैसे कि स्वामी सच्चिदानन्द संस्थाओं या हिन्दू मन्दिरों द्वारा प्रायोजित बाल मन्दिर में भेजते हैं।
अमेरिका में जैनधर्म का पालन करने में कठिनाइयाँ
विश्व में हर जगह की तरह अमेरिका में जैन अल्प संख्या में हैं । अमेरिका के जैन समाज ने अल्प संख्या की कठिनाइयों का सामना करने के लिए नई सोच का उपयोग किया है। इस नई सोच के अनुसार अमेरिका में चली हुई नई प्रथाएँ भारत में देखने को नहीं मिलेंगी - जैसे कि हिन्दू मन्दिरों में जैन प्रतिमाएँ और सभी जैन सम्प्रदायों का मिल-जुल कर रहना, साथ में मन्दिर बनाना, और साथ में सम्मेलनों में भाग लेना । अमेरिका में बसे हुए हिन्दू समाज की सहायता से जैनों को मन्दिरों में प्रतिमाएँ स्थापित करने की सुविधा मिली और जैन समाज इसके लिए अपने स्थानीय हिन्दू समाजों के आभारी हैं। जहाँ एक तरफ पूजा की सुविधा हुई है, वहीं दूसरी तरफ कुछ समझौते भी करने पड़े हैं । हिन्दू मन्दिरों में हिन्दू पूजाओं को प्राथमिकता मिलती है और जैन समाज को इसको विचार में रखना पड़ता है। जैन लोग अपनी प्रतिमाओं को शुद्ध वस्त्रों में ही प्रक्षाल या चन्दन पूजा के लिए छूते हैं, लेकिन कुछ हिन्दू भक्त अनजाने में जैन प्रतिमाओं 760 :: जैनधर्म परिचय
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