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को न छूने की सूचना लगा होने पर भी अपने रोज के वस्त्रों में जैन प्रतिमाओं के पैर छू लेते हैं, उन पर फूल, कुमकुम, पैसे इत्यादि चढ़ा देते हैं। __ इसी प्रकार जैन सम्प्रदायों के मिले हुए मन्दिर में भी प्रत्येक सम्प्रदाय को कुछ समझौते करने पड़ते हैं और छोटे सम्प्रदाय वालों को प्राय: यही लगता है कि उन्हें उनके पूरे अधिकार नहीं मिल रहे। इसी तरह भारत के विभिन्न जगहों से आये हुए जैन लोग अमेरिका में मिलकर पूजा करते हैं। जहाँ-जहाँ एक ही जगह के लोग ज्यादा होते हैं, वहाँ उन्हीं के इलाके की प्रथाओं और भाषा का जोर रहता है और कभी-कभी और जगह के लोगों को इसमें कुछ समझौते करने पड़ते हैं। अमेरिका में अधिकतर जैन गुजरात से हैं और इनमें अधिकतर श्वेताम्बर सम्प्रदाय वाले हैं। इसलिए कई जगह जैन पूजाएँ और समारोह गुजराती भाषा में होते हैं और जिनको गुजराती नहीं आती है, वह पूरी तरह से भाग नहीं ले पाते हैं। उदाहरणार्थ-शिकागो शहर में हुए 2008 के युवा जैन सम्मेलन में लगभग 2 हजार गुजराती युवाओं के बीच केवल 6 युवा थे, जो गुजराती भाषा नहीं जानते थे- और ये लोग सम्मेलन की गतिविधियों में पूरी तरह भाग नहीं ले पाये। कई जगहों पर गुजराती जैन समाज अल्प संख्यक लोगों की समस्याओं के बारे में जागरूक है
और ऐसे लोगों को गतिविधियों में सम्मिलित करने की पूरी चेष्टा करता है। ___ जैन श्रावकों को अमेरिका में धर्म के पालन में शायद सबसे बड़ी समस्या है कि यहाँ पर बड़ी हो रही आने वालों पीढ़ियों को धार्मिक संस्कार कैसे दिए जाएँ? भारत में तो घर में रह रहे बुजुर्गों से, मन्दिर और आसपास में रहने वाले सहधार्मिक बन्धुओं से, धार्मिक त्योहारों के मनाने में, शहर में आये हुए मुनियों और साध्वियों के दर्शनों और प्रवचनों के माध्यम से बच्चों में धर्म के संस्कार पड़ जाते हैं। अमेरिका में अधिकतर परिवार में खाली माता-पिता और बच्चे होते हैं और अधिकतर परिवारों में माता और पिता दोनों ही नौकरी करते हैं। बच्चे भी स्कूल की पढ़ाई, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं। इन सब के बीच धर्म की कथाओं और चर्चा का समय कम ही मिल पाता है। जैन समाजों में जैन पाठशाला और जैन त्यौहारों के मनाने से इस कार्य में थोड़ी सहायता हुई है, पर सारे जैन इन मौकों का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। __जैन श्रावकों, खासतौर से दिगम्बर जैन श्रावकों को, अमेरिका में जैनधर्म के मार्ग दर्शन के लिए यहाँ पर मुनियों और साध्वियों के सान्निध्य का अभाव बहुत खलता है। यहाँ तक कि, अधिक धार्मिक भावना रखने वाले लोग इस कारण से कभी-कभी भारत वापिस भी लौट जाते हैं। अन्य जैन सम्प्रदायों के मुनि और साध्वियाँ तो आते हैं, पर वह भी इतने नहीं मिलते, जितने कि भारत में। पिछले कुछ सालों में दिगम्बर जैन सम्प्रदाय की क्षुल्लिका शुभमती जी अपने संघ के आचार्य सन्मति सागर महाराज की अनुमति से दो बार अमेरिका आयीं और प्रभावी प्रवचन दिये। सन् 2007 के जैना के सम्मेलन में क्षुल्लिका शुभमती जी के केशलौंच से, देखने वालों को दिगम्बर धर्म के नियमों के बारे
अमेरिका में जैनधर्म :: 761
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