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सिंगापोर सिख समाज ने 62000/- डॉलर की पूँजी जैन समाज को दी। आनन्द मेला जैसी गतिविधियाँ आयोजन करके कुछ और पैसे जमा किये। लगभग 300000/- डालर की पूँजी जमा कर कुछ स्वयंसेवक भुज पहुँचे, जिनमें कुछ डाक्टर भी थे। रामकृष्ण मिशन
और स्वामीनारायण संस्था के साथ मिलकर उन्होंने पाठशाला और दवाखाना बनाने में मदद की। शिविर
हर दूसरे वर्ष समाज जैन शिविर का आयोजन करती है। मलेशिया और इंडोनेशिया जैसी पडोसी देशों के किसी सुन्दर पर्यटक स्थल पर चार दिन की यात्रा का आयोजन किया जाता है। नैसर्गिक वातावरण में बड़े हर्मोल्लास के साथ शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास का प्रयत्न किया जाता है। योग, खेलकूद, नाच-गाना इन सभी गतिविधियों का आयोजन धर्मानुसार किया जाता है । पड़ोसी देश जैसे मलेशिया, इंडोनेशिया और होंगकोंग से भी जैन बन्धुओं को आमन्त्रित किया जाता है। सिंगापोरे के व्यस्त जीवन से हटकर प्रकृति के आँगन में धर्म की शिक्षा हम सब मिलकर ग्रहण करते हैं। सिंगापोर जैन समाज की कुछ खास गतिविधियाँ समस्याएँ अपने देश और संस्कृति से दूर धर्म का आचरण करना थोडा सा कठिन होता है। जैन परिवारों को सबसे बड़ी कठिनाई होती है जैन भोजन के उपलब्धता की। घर से बाहर जैसे-दफ्तरों और पाठशालाओं में जैन तो क्या शाकाहारी व्यंजन भी बड़ी मुश्किल से मिलता है। पाठशाला
और विद्यालयों में अभी तक जैनधर्म क्या है, और जैनी किस प्रकार से अहिंसा का पालन करते हैं, उस विषय पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। युवा वर्ग जो विद्यालयों में दिन के 10 से 12 घंटे बिताते हैं, उन्हें कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यहाँ के ज्यादातर जैन परिवार घर के बाहर जैन भोजन की अपेक्षा न रखते हुए घर के शाकाहारी भोजन से ही काम चलाते हैं। इन सारी समस्याओं के बावजूद, मेरे मत में भारत से बाहर रहकर भी अपना धर्म और अपनी संस्कृति की पहचान नयी पीढ़ी को करवा सके इसका श्रेय हमारे जैन बुजुर्गों को जाता है, जिन्होंने आज से सौ साल पहले सिंगापोर देश को जैन धर्म का परिचय करवाया।
सिंगापोर में जैनधर्म :: 753
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