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अमेरिका में जैनधर्म
डॉ. संजय जैन "असली तरह से तो धर्म आप लोग अमेरिका में निभा रहे हैं"-भारत से आये एक पंडितजी का यह वाक्य सुनकर मैं सोचने लग गया। क्या हम लोग भारत से हजारों मील दूर, सही में धर्म अच्छी तरह निभा पा रहें हैं ? यह बात तो है कि अमेरिका में जब सन् 1984 में पहली बार मैं शिक्षा के लिए पहुँचा, तबसे अब तक अमेरिका में जैनधर्म के अनुयायियों और जैन मन्दिरों की संख्या काफी बढ़ गयी है। संख्या में बढ़ोतरी के प्रभाव से जैनधर्म का पालन करना भी आसान हो गया है, लेकिन क्या हम लोग धर्म वैसे निभा पा रहें हैं, जैसे हमारे साधर्मिक बन्धु भारत में निभाते हैं ? इस तरह के हरेक प्रश्न के समान इसका एक सीधा-सा उत्तर 'नहीं' है। अमेरिका में कुछ जगह धर्म की क्रियाएँ अच्छे से होती हैं, कहीं ज्ञान की चर्चा, और कहीं दोनों ही; कहीं समाज बड़ा है तो कहीं समाज छोटा है। शायद अमेरिका में कहीं पर धर्म भारत की किसी जगह से अच्छा निभाया जाता होगा, लेकिन औसतन तो मेरी समझ में भारतवासी ही जैनधर्म के पालन में आगे होंगे। इस लेख में अमेरिका में जैनधर्म के प्रमुख पहलुओं का वर्णन प्रस्तुत है। अमेरिका में जैनियों का इतिहास' ___अमेरिका में जैनधर्म का इतिहास का प्रारम्भ हुआ सन् 1893 श्री वीरचन्द राघवचन्द गाँधी के आगमन से। श्री वी. रा. गाँधी अपने गुरु मुनि आत्मारामजी की प्रेरणा से अमेरिका में धर्मों की प्रथम विश्व संसद में जैनधर्म के प्रतिनिधि बनकर आये थे और उन्होंने अपने प्रभावशाली वक्तृत्व से जैनधर्म और भारतीयता का झंडा ऊँचा किया था। मनि आत्मारामजी जैनधर्म के बारे में विश्व संसद में जागरूकता पैदा करना चाहते थे, परन्तु मुनिधर्म के नियमों के अन्तर्गत वह स्वयं इस संसद में नहीं जा सकते थे। इसलिए उन्होंने 29 वर्षीय वीरचन्द राघवजी गाँधी को इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए नियुक्त किया
और उन्हें छह महीने के लिए प्रशिक्षित किया। वैसे श्री वी. रा. गाँधी खुद भी पहले से ही बहुत ज्ञानी थे। उनका बचपन से ही धर्म से बहुत लगाव था-वह 1885 में 21 वर्ष की आयु में भारत के जैन एसोसिएशन के पहले अवैतनिक सचिव बने थे।
श्री वी. रा. गाँधी के भाषणों को अमेरिका में हर जगह बहुत सराहा गया और उनको कई स्थानों से आमन्त्रित किया गया। वह पहली यात्रा में दो साल तक अमेरिका 754 :: जैनधर्म परिचय
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