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व्यक्ति पर सम-प्रभाव डालती है, गलत है। वास्तु में दिशा तथा दशा के साथ-साथ जन्म पत्रिका एवं मूलांक का विशेष महत्त्व है या यूँ कहा जाए कि वास्तु ज्योतिष के बिना अधूरा है। दोनों का समन्वय वास्तु को सम्पूर्णता प्रदान करता है। वास्तु का समुचित समायोजन जीवन को सांसारिक तथा आध्यात्मिक कार्यों को करने के लिए ऊर्जा प्रदान करता है। इसीलिए जैन शास्त्रों में विशेषकर कहा गया कि वास्तु व्यवस्थित जीवन जीने की कला का नाम है।
सन्दर्भित ग्रन्थ-सूची 1. वास्तुसार प्रकरण
श्री ठक्कुर फेरू द्वारा (सन् 1372) में रचित एवं पंडित
भगवानदास जैन द्वारा अनुवादित 2. प्रसाद मंडन
श्री ठक्कुर फेरू द्वारा (सन् 1372) में रचित एवं पंडित
भगवानदास जैन द्वारा अनुवादित 3. (Waves, Optics and electromagnatics) R.K. Singh, M.C. Shaha, A. K. Shrivastava
(Wieley Estern Ltd. Delhi) 4. Colour Therapy (Healey with colour) R.B. Amber, Firma KLM Ltd. Kolkata 5. Engineering Material
S.C. Rangwala, Charotar Pub. House, Anand 6. बृहत्संहिता
डॉ. सुरेश मिश्र, रंजन पब्लिकेशन, दिल्ली 7. समरांगण सूत्रधार (वास्तुशास्त्रीय भवन-निवेश) डॉ. द्विजेन्द्र नाथ शुक्ल, मेहरचन्द लछमनदास
पब्लिकेशन, नई दिल्ली 8. प्रतिष्ठा पाठ
आचार्य जयसेन 9. प्रतिष्ठा सारोद्धार
पं. आशाधरजी
736 :: जैनधर्म परिचय
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