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मंडल । आधुनिक युग में विदेशों में जैनों की एक शानदार उपलब्धि- जब सन् 1926 में एक भव्य जैन मन्दिर (देरासर) का निर्माण हुआ ।
प्रारम्भिक समय में जैनों ने छोटे-छोटे व्यवसाय के माध्यम से सम्पूर्ण पूर्वीय एवं दक्षिण अफ्रीका में प्रवासित होना प्रारम्भ किया, निर्माण उद्योग एवं फुटकर व्यापार के माध्यम से व्यापारिक सफलताएँ प्राप्त कीं। जैनों ने बड़े सुपर मार्केट, निर्माण कार्य वाली कम्पनियाँ तथा बैंकिंग एवं वित्त व्यवसाय में प्रवेश किया। मोम्बासा से युगांडा एवं तंजानिया आदि देशों में व्यवसाय प्रारम्भ किया। आज युगांडा एवं तंजानिया में जैनों के भव्य मन्दिर हैं, जो जैनों की स्वतन्त्र पहचान है ।
साउथ अफ्रीका में भारतीयों का आगमन मुख्यतः एक अनुबन्धित मजदूर के रूप में हुआ था। हीरा एवं सोने की खोज के पश्चात्, व्यापारिक अवसरों की तलाश में अनेक व्यापारी भारतीयों का आगमन भी साउथ अफ्रीका में हुआ था। साउथ अफ्रीका के जैन संगठन के माध्यम से ज्ञात होता है कि सन् 1901-1903 के दौरान, प्रथम जैनों में श्री वी. डी. मेहता, एम. एम. मोदी, ए. एन. गोसालिया, के. मेहता, पी. पी. पूनाथर एवं पी. सांगवे के परिवार प्रमुख हैं। प्रारम्भिक जैनों को साउथ अफ्रीका में स्थानीय अफ्रीका एवं प्रवासित अँग्रेजों से बहुत संघर्ष करना पड़ा था ।
यह संक्षिप्त आलेख 'अफ्रीका में जैनधर्म' के अध्ययन का शुरूआती अध्याय ही कहा जा सकता है। इस विषय पर और शोध और अनुसन्धान की आवश्यकता है।
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अफ्रीका में जैनधर्म : 743