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विदेशों में यह प्रथम जैन मन्दिर है।
एक और सन्दर्भ से इस बात की पुष्टि होती है कि अलेक्जेंडरिया (Alexandria) में भारतीयों की एक प्रवासित कालोनी थी। Quseir (एक बन्दरगाह शहर, मिस्र के उत्तर में) से प्राप्त एक Ostrakon से इस बात की पुष्टि होती है। इसका अनुमानित समय 23 AD माना जाता है। इसमें ब्राह्मी लिपि में लिखी हुई मालवाहक सूची प्राप्त हुई है। खुदाई में पाए गये मिट्टी के बर्तनों पर भी तमिल-ब्राह्मी में एक आलेख मिला है। ये सारे तथ्य इस. बात को सूचित करते हैं कि व्यापार एवं वाणिज्य के लिए भारतीयों का
आवागमन एवं प्रवास इन मिस्र एवं नजदीकी अफ्रीकी देशों के साथ था। __भारतीय उपमहाद्वीप में बारहवीं शताब्दी के पश्चात् राजकीय उथल-पुथल के सुनहरे अतीत को छिन्न-भिन्न कर दिया। विभिन्न राजसत्ताओं में वर्चस्व की लड़ाई प्रारम्भ हो गई। धार्मिक कट्टरता के कारण छोटी-छोटी राजसत्ताऐं आपस में युद्ध करने लगीं। इस परिस्थिति का विदेशी सत्ताओं ने अवसर पाकर भारतीय उपमहाद्वीप में अपने पैर पसारने प्रारम्भ कर दिये। इस राजकीय अराजकता में जैन धर्मावलम्बियों को अत्याधिक क्षति हुई। जैन धर्मावलम्बियों के अहिंसक चरित्र के कारण राजकीय प्रभाव कम हुआ, किन्तु किसी तरह जैन धर्मानुयायियों ने वैदिक और हिन्दू अवधारणाओं को परिवर्तित रूप में अपना लिया और अपने अस्तित्व को बनाये रखा। जैनों ने हिन्दू आदि गोत्रों को अपना लिया और भारतीय पहचान के साथ अपने आप को जोड़ लिया। __ इतिहास-लेखन जैनों की एक बहुत बड़ी कमजोरी रही है। जैनों ने साहित्यिक परिदृश्य में बहुत समय बाद लेखन प्रारम्भ किया है। आधुनिक युग में जैनों के अफ्रीका प्रवासित होने के उल्लेख ओसवाल जाति के इतिहास से प्राप्त होते हैं।
ऐसा माना जाता है कि ओसवाल जैन श्री जेठा आनन्द (खार, वेरजा) ने छोटी नावों के द्वारा पहली बार 1896 में मदागासकर (अफ्रीका) में पदार्पण किया। वे जंजीवार (अफ्रीका) होकर ही मदागासकर पहुंचे। उन्होंने अन्य ओसवालों को भी अफ्रीका में व्यापार और वाणिज्य के विस्तार के लिए प्रेरित किया। सन् 1899 में अन्य ओसवाल जैन श्री हिरणी कारा, श्री पोपटलाल वर्षी एवं श्री नथ्थू देवजी इंडिया ने मोम्बासा (केन्या) शहर में पहुँचकर छोटी-छोटी व्यापारिक गतिविधियाँ प्रारम्भ की। __ ऐसा माना जाता है कि श्रीमती कनुभाई हिरजी पहली ओसवाल महिला मोम्बासा में पहुँची। श्री रतिलाल हिरजी कारा पहले ओसवाल जैन थे, जिन्होंने सन् 1902 में अफ्रीका में जन्म लिमा । व्यापार और वाणिज्य में कुशल होने के कारण, जैनों ने शीघ्र ही प्रगति के नये सोपानों को प्राप्त किया। मैसर्स मेघजी लड्डा एण्ड कम्पनी पहली कम्पनी थी, जो ओसवाल जैनों द्वारा स्थापित की गई। इस प्रकार मोम्बासा में अल्पावधि में ही जैनों ने एक प्रमुख समुदाय के रूप में स्वयं को स्थापित कर लिया। सन् 1918 में पहली बार एक धार्मिक संगठन बनाया गया, इसका नाम था- श्री हलारी जैन ज्ञान वर्धक
742 :: जैनधर्म परिचय
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