________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दिशा का महत्त्व तो है, किन्तु दशा का महत्त्व उससे कहीं ज्यादा है। भूमि की दशा का किसी भी निर्माण कार्य में 70 प्रतिशत योगदान होता है, जबकि ऊपरी संरचना अर्थात् दिशा विन्यास मात्र 30 प्रतिशत प्रभाव डालती है । दिशा विन्यास यदि बाहरी वातावरण को प्रभावित करता है, तो दशा-विन्यास आन्तरिक भूगर्भीय संरचना एवं भूमि-गत ऊर्जा को प्रभावित करता है । भूमि का चयन, कार्य-विशेष को ध्यान में रखकर किया जाता है । धार्मिक कार्यों के लिए शान्त तथा निवास के लिए प्रशस्त भूमि का चयन किया जाता है । इसी प्रकार धर्मग्रन्थों में तो युद्ध के लिये निर्दयी, निष्ठुर भूमि के चयन का वर्णन आया है । जब महाभारत का युद्ध हुआ, तो भूमि-चयन के लिये श्रीकृष्ण ने उस भूमि को चुना, जहाँ माँ ने सिंचाई के लिए जल को रोकने हेतु नहर में मिट्टी के बदले अपने बच्चे को लगा दिया। बच्चे की मृत्यु होने के उपरान्त बिना किसी खेद के स्वयं ही बच्चे को जमीन में गाढ़ दिया । श्रीकृष्ण जी ने यही भूमि युद्ध के लिए सर्वोत्तम मानी, जहाँ माँ की ममता भी स्वार्थ की बलि चढ़ गई, यही जगह "कुरुक्षेत्र" कहलाती है । भूमि की अन्तर्दशा मानवीय संवेदनाओं पर गहरा प्रभाव डालती है । भूमि चयन करने की कई विधियाँ हैं, जिनमें से पाँच प्रमुख हैं :
1. भौतिक विधि (Physical Method)- रस, गन्ध, वर्ण, स्वर एवं घनत्व के आधार पर भूमि का चयन किया जाता है।
2. रासायनिक विधि (Chemical Method)- भूमि में उपस्थित तत्त्व के आधार पर भूमि का चयन किया जाता है ।
3. भौगोलिक विधि (Geographic Method)- भूमि का उतार-चढ़ाव, नदीपहाड़ आदि की स्थिति के आधार पर भूमि का चयन किया जाता है।
4. यान्त्रिकीय विधि (Mechanical Method)- यान्त्रिक उपकरणों (लेचर एंटिना) के द्वारा भूमि की ऊर्जा का परीक्षण किया जाता है। .
5. डाउजिंग विधि (Dousing Method)- इस विधि में व्यक्ति अपनी संवेदनशीलता के माध्यम से भूमिगत ऊर्जा का ज्ञान करता है। ___ भूमि का चयन भिन्न-भिन्न जाति के लिए भिन्न-भिन्न होता है।
| वर्ण | रंग | स्वाद | गन्ध ब्राह्मण | सफेद | मीठा | घी क्षत्रिय | लाल | कसैला| रक्त
वैश्य
| पीला | खट्टा | तेल | काला | कड़वा मछली
728 :: जैनधर्म परिचय
For Private And Personal Use Only