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वास्तु व वस्तु (Building Material)-भवन वास्तु के निर्माण में प्रयुक्त की जाने वाली सामग्री पर सूर्य-किरणों का सीधा प्रभाव पड़ता है । जैसे—प्राचीन काल में मिट्टी के मकान बनाये जाते थे, जो-कि सर्वश्रेष्ठ होते थे, कारण यह है कि मिट्टी आर्द्रता को अवशोषित कर वाष्पीकृत कर देती है तथा वायु के सम्पर्क में आकर वायु में उपस्थित विभिन्न रोगाणुओं को समाप्त करती है एवं तापमान उचित बना रहता है, जिससे निवास-कर्ता का मन शान्त रहता है, जो-कि धर्म-आराधना में सहायक है । ___ घर की छत, फ्लोर, दीवार में कोटा स्टोन, सैण्ड स्टोन एवं सिरेमिक टाइल्स का प्रयोग कर सकते हैं । भूलकर भी घर में ग्रेनाइट, मार्बल, काला पत्थर आदि का प्रयोग ना करें, क्योंकि यह सूर्य की लाभकारी किरणों को भी हानिकारक किरणों में परिवर्तित कर देते हैं।
वे घर (पक्के मकान) जिनमें काँक्रीट, सीमेन्ट प्लास्टर, पेन्ट, वार्निश तथा पी.वी.सी. आदि का भरपूर प्रयोग होता है, वे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध होते हैं। जिन भवनों (कच्चे मकान) में पत्थर, मिट्टी, ईंट, रेत, चूना, मार्टर, लकड़ी आदि का प्रयोग होता है, वे भवन सौर एवं ब्रह्माण्डीय ऊर्जाओं के सुचालक होते हैं तथा नकारात्मक ऊर्जाओं को निष्कासित कर देते हैं। प्राचीन किले, मन्दिर, पाषाण (सैण्डस्टोन) से निर्मित किये जाते थे, जिसके पीछे मुख्य तथ्य यह था कि, पाषाण में बारीक-बारीक (अदृश्य) छिद्र होते हैं, जो कि सूर्य की ऊर्जा को अन्दर तक पहुँचाने में सक्षम होते हैं । भवन की दीर्घायु हेतु इन पाषाणों को इस तरह से समायोजित किया जाता था कि एक नर और दूसरा मादा पत्थर आपस में मिलाकर लगाये जाते थे। आकर्षण के सिद्धान्त के कारण ये हजारों वर्ष तक एक दूसरे से जुड़े रहते हैं।
रंग- विभिन्न रंगों का हमारे तन-मन पर भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़ता है। रंगों का चयन व्यक्ति की राशि एवं वास्तु स्थान के उपयोग पर निर्भर करता है। जैसे शयनकक्ष शुक्र ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है, अत: उसमें शुक्र से सम्बन्धित रंग का ही चयन किया जाना चाहिए। जैसे कि गुलाबी, बैंगनी एवं सफेद रंग। इसी तरह रसोई घर की आन्तरिक सज्जा में हल्का पीला, नारंगी एवं सफेद रंग कर सकते हैं । बैठक-कक्ष में पिस्ता, हल्का पीला तथा अध्ययन-कक्ष में हल्का पीला, हल्के नीले रंग का उपयोग करें; परन्तु घर में कहीं भी काला, मटमैला और भूरे रंग का प्रयोग ना करें, क्योंकि ये सभी रंग शनि और राहु-केतु के प्रतीक हैं, जो- कि मन को उद्विग्न करते हैं। ____ भूमि चयन (Land Selection)- आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने अष्टांग-निमित्त में "भूमि-निमित्त" बताया है, जिसमें भूमि के प्रकार और गुण-धर्मों का वर्णन है । सामान्यतः वास्तु में दिशा को ही महत्त्व दिया जाता है । जबकि यथार्थ यह है कि दिशा से कहीं ज्यादा भूमि की अन्तर्दशा महत्त्व रखती है। बिल्कुल वैसे ही, जैसे मानव की ऊपरी संरचना से ज्यादा महत्त्वपूर्ण उसकी अन्तर-आत्मा या आभा-मण्डल होता है। वास्तु में
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