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हो, ऐसी भूमि को अधम भूमि समझा जाता है।
भूमि की ऊर्जा मापने की डाउजिंग पद्धति में भूमि चयनकर्ता अपने हाथों में एल (L) शेप की दो कॉपर राडें लेकर नंगे पैर चलता है। रॉड की घूमने की तीव्रता के आधार पर भूमि की ऊर्जा का ज्ञान होता है तथा भूमि में छिपी हुई अज्ञात वस्तुएँ जैसे खनिज सम्पदा, जल, इसके अलावा, भूमि में छिपी शल्य, कंकाल व अन्य नेगेटिवपॉजिटिव ऊर्जा उत्पन्न करने वाले तत्त्व खोजे जाते हैं। हालांकि यह पद्धति सदियों पुरानी है। फिर भी आश्चर्यचकित करने वाली है। मैं स्वयं एक डाउजर हूँ और इस विधि से 200 से अधिक स्थलों पर कंकाल (हड्डियाँ) निकाल चुका हूँ, जिनमें से 9 जैन मन्दिर सम्मिलित हैं । यही नहीं मनुष्यों का आभा मण्डल एवं स्वास्थ्य का परीक्षण भी इस विधि से किया जा सकता है।
वास्तु एवं शुद्धीकरण विधि- चयनित भूमि की ऊपरी परत जो-कि बाहरी वातावरण से दूषित रहती है, उसे लगभग 3 फीट से लेकर 5 फीट तक खोदकर अलग कर दें । भूमि को समस्त नकारात्मक ऊर्जा एवं दुष्प्रभावों से मुक्त करने हेतु भूमि में पारा रोपित (Inject) करें। पारा जमीन के क्षेत्रफल एवं नकारात्मक ऊर्जा को आधार मानकर हवा के प्रवाह की दिशा में भूमि में डालें। निश्चित तौर पर कुछ ही दिनों में समस्त नकारात्मक ऊर्जा पलायन कर जाएगी। जैसे ही पारा भूमिगत होता है, वह वैसे ही भूमि के समस्त विकारों को नष्ट कर देता है, क्योंकि पारा एक बुभुक्षु धातु है। ___ भूमि के "गर्भ-विन्यास" (शिलान्यास) का वास्तु में बड़ा महत्त्व है। शिलान्यास श्रेष्ठ मुहूर्त, शुभ मास, पक्ष, नक्षत्र, लग्न, दिन व ग्रहों की शुद्धि के आधार पर करें । गर्भ-विन्यास में चाँदी का नन्दावर्त स्वास्तिक अवश्य डालें एवं ताम्र पात्र में चाँदी, तांबा, पारा का स्वास्तिक पंचरत्न, चाँदी का सवा रुपया, जड़ धान्य औषधि एवं सवा किलो गाय का घी रखें, जिससे भूमि रत्नप्रभा व घृततुल्य सुगन्ध वाली हो जावेगी।
- निर्माण कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व वास्तु-रजिस्ट्री (भूमि में निवासरत देवताओं से निर्माण की आज्ञा) अवश्य करायें । वास्तु के 49 अर्घ्य चढ़ाकर विधिवत् तरीके से कलश दीप सहित स्थिर लग्न और चन्द्र स्वर में स्थापित करें। ध्यान रखें कि शिलान्यास के गढ्ढे को ढकते वक्त दीप प्रज्वलित रहे जिससे आपके गृह वास्तु की ज्योति जीवन्त होगी। शिलान्यास के उपरान्त शिल्पी का तिलककरण वस्त्र और मुद्राएँ देकर करें ।
भूमि यदि निवास के लिए तैयार करना हो, तो उस भूमि पर सात दिवस तक प्रथम जनने वाली गाय को बछड़े सहित सेवा की जाये । जब गाय बछड़े को वात्सल्य (चाटती है) करती है, तो उसके मुख से जो लार भूमि पर गिरती है, उससे भूमि वात्सल्यमयी हो जाती है । जिससे निवासकर्ताओं में आपस में प्रेम, स्नेह, वात्सल्य बना रहता है। यदि भूमि वाणिज्य, व्यापार हेतु तैयार करना हो, तो शिलान्यास के गड्ढे
730 :: जैनधर्म परिचय
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