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चन्द्र विमान के कुल 16 विभाग हैं। एक-एक दिन में एक-एक भाग कृष्णरूप परिणमन करता है और 15 दिन में वह पूरा कृष्णरूप हो जाता है; फिर अगले प्रतिपदा से प्रत्येक दिन एक-एक भाग श्वेतरूप से परिणमन करता है और 15 दिन में पूर्णमासी तक वह पूरा शुक्लरूप हो जाता है। अन्य आचार्यों के अनुसार अंजनवर्ण राहु का विमान प्रतिदिन एक-एक पथ में 15 कला-पर्यन्त चन्द्र-बिम्ब के एक-एक भाग को आच्छादित करता है, फिर पुनः वही राहु प्रतिपदा से पूर्णिमा तक अपने गमन-विशेष से एकएक वीथी में एक-एक कला को छोड़ता जाता है। इस कारण चन्द्र-कलाएँ प्रति-पक्ष घटती और बढ़ती रहती हैं। ___ उत्तरायण-दक्षिणायन-सूर्य का भीतरी प्रथम गली से बाहरी अन्तिम गली की ओर गमन 'दक्षिणायन' कहलाता है और बाहरी अन्तिम वीथी से भीतरी प्रथम वीथी की
ओर गमन 'उत्तरायण' कहा जाता है। श्रावणकृष्ण प्रतिपदा को कर्कराशि में रहते हुए सूर्य भीतरी प्रथम गली में गमन करता है, तब दिन 18 मुहूर्त का और रात्रि 12 मुहूर्त की होती है। प्रथम गली से अन्तिम गली की ओर गमन करने पर सूर्य की गति क्रमश: तेज होती जाती है और दिन का प्रमाण घटने और रात्रि का प्रमाण बढ़ने लगता है। माघ कृष्ण प्रतिपदा को मकर राशि में रहते हुए सूर्य अन्तिम गली में भ्रमण करता है। यहाँ पर रात्रि 18 मुहूर्त की और दिन 12 मुहूर्त का होता है। बाहरी परिधि से भीतरी परिधि की ओर सूर्य के गमन करने पर रात्रि घटने और दिन बढ़ने लगता है। सूर्यगति भी क्रमशः मन्द होती जाती है। बाहरी परिधि में सूर्य सिंहवत् तेज चलता है, मध्यम वीथियों में घोड़ेवत् तथा भीतरी वीथियों में हाथीवत् गमन करता है।127
भवनत्रिक में कौन जन्म लेते हैं?— भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवों को भवनत्रिक कहते हैं। जिनमत के विपरीत धर्म का आचरण करने वाले, निदान-सहित तप तपने वाले, आग, जल आदि से मरने वाले, खोटे तप तपने वाले तथा सदोष चारित्र-पालक जीव भवनत्रिक में जन्म लेते है।128 जो कुतपों द्वारा शरीर को कष्ट देते हैं, सम्यक् तप अंगीकार करके भी विषयासक्त हो जलते रहते हैं, वे सब विशुद्ध लेश्याओं से देवायु का बन्ध कर बाद में क्रोधादि कषायों द्वारा इस आयु का घात कर सम्यक्त्व से मन हटाकर भवनत्रिकों में जनमते हैं।129 __ वैमानिक देव-वैमानिका: 4/16, त.सूत्र-चतुर्थ निकाय के देव वैमानिक देव हैं। विमानों में रहने के कारण इन्हें वैमानिक कहा गया है।130 यद्यपि ज्योतिषी देव भी विमानों में रहते हैं, तो भी इन चतुर्थ निकाय के देवों में ही वैमानिक संज्ञा रूढ़ है। इनका जन्म विमानों में उपपाद शय्या पर होता है।
इनके विमान 3 प्रकार के हैं-(1) इन्द्रक, (2) श्रेणीबद्ध और (3) प्रकीर्णक। सभी विमानों के मध्य में इन्द्र की भाँति स्थित विमान 'इन्द्रक' कहलाते हैं। ये प्रत्येक
546 :: जैनधर्म परिचय
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