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दशरथमुनि
यह दक्षिण के दिगम्बर मुनि थे। इन्होंने 'कायचिकित्सा' पर कोई ग्रन्थ लिखा था। यह वर्तमान में अप्राप्त है।
श्री उग्रादित्याचार्य द्वारा प्रणीत कल्याणकारक (पृ. 20/85) में इनका पूर्वाचार्य के रूप में उल्लेख किया गया है-काये सा चिकित्सा दशरथगुरुभिः'। ___ सम्भवतः ये उग्रादित्य के गुरु रहे हों। उनके अन्य गुरु, जिनका कल्याणकारक में दो तीन स्थानों पर उल्लेख है, का नाम श्रीनन्दि था। 'आदिपुराण' के कर्ता जिनसेन के दशरथगुरु सतीर्थ (सहपाठी, गुरुभाई) थे। इनके गुरु आचार्य वीरसेन (षट्खण्डागम पर 'धवला' और कषायप्राभृत पर 'जयधवला' टीका के रचयिता) थे। ये मूलसंघ के पंचास्तूपान्वय के आचार्य थे। जिनसेन और दशरथगुरु के प्रसिद्ध शिष्य गुणभद्र हुए। उत्तरपुराण की प्रशस्ति (श्लोक सं. 11-13) में आचार्य गुणभद्र ने लिखा है-'जिस प्रकार चन्द्रमा का सधर्मी सूर्य होता है, उसी प्रकार जिनसेन के सधर्मी या सतीर्थ दशरथ गुरु थे। जो-कि संसार के पदार्थों का अवलोकन कराने के लिए अद्वितीय नेत्र थे। इनकी वाणी से जगत् का स्वरूप अवगत किया जाता था।' गोम्मटदेव मुनि
यह दक्षिण भारत के दिगम्बर आचार्य थे। इनका 'मेरुतन्त्र' या 'मेरुदण्डतन्त्र' नामक वैद्यग्रन्थ का उल्लेख मिलता है। इसके प्रत्येक परिच्छेद के अन्त में पूज्यपाद का सम्मानपूर्वक नामोल्लेख किया गया है। गोम्मट देव ने 'मेरुतन्त्र' नामक वैद्य ग्रन्थ में पूज्यपाद को अपना गुरु बतलाते हुए उनके वैद्यामृत नामक ग्रन्थ का उल्लेख निम्न प्रकार से किया है
सिद्धान्तस्य च वेदिनो जिनमते जैनेन्द्र पाणिन्य च। कल्प व्याकरणाय ते भगवते देव्यालिया राधिया।। श्री जैनेन्द्र वचस्सुधारसवरैः वैद्यामृतो धार्यते।
श्री पादास्य सदा नमोऽस्तु गुरवे श्री पूज्यपादौ मुनेः।। यह ग्रन्थ कन्नड भाषा में रहा होगा। अब यह उपलब्ध नहीं है।
अतः ये पूज्यपाद से परवर्ती हैं। जैन सिद्धा. भवन आरा (बिहार) से प्रकाशित 'सारसंग्रह' में गोम्मटदेवकृत' नाड़ीपरीक्षा और ज्वरनिदान आदि को उद्धृत किया गया है। गोम्मटदेव मुनि ने मेरुदण्ड तन्त्र नामक ग्रन्थ का निर्माण किया था, जिसमें आयुर्वेदीय चिकित्सा सम्बन्धी रसयोगों का उल्लेख है। इस ग्रन्थ में लेखक ने श्रीपूज्यपाद स्वामी का आदरपूर्वक स्मरण एवं उल्लेख किया है। वर्तमान में यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। श्रीवर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री ने 'कल्याणकारक ग्रन्थ के अपने सम्पादकीय वक्तव्य में
634 :: जैनधर्म परिचय
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