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ग्रन्थ की प्रति जैन सिद्धान्त भवन, आरा में सुरक्षित है। इस ग्रन्थ में जो मंगलाचरण दिया गया है, उसमें बड़े स्पष्ट रूप से पूज्यपाद द्वारा कथित कल्याणकारक ग्रन्थ का उल्लेख है जिससे स्पष्ट है कि पूज्यपाद स्वामी ने 'कल्याणकारक' नामक एक ग्रन्थ का निर्माण किया था। 'सार-संग्रह' में विहित मंगलाचरण निम्न प्रकार है
नमः श्रीवर्धमानाय निर्धूतकलिलात्मने। कल्याणकारको ग्रन्थः पूज्यपादेन भाषितः।।
सर्वलोकोपकारार्थं कथ्यते सारसंग्रहः।। पूज्यपाद द्वारा लिखित आयुर्वेद के अनेक ग्रन्थों का उल्लेख है, जिनमें से कुछ निम्न हैं-रत्नाकरौषध योग ग्रन्थ, भैषज्यगुणार्णव, वैद्यसार, निदानमुक्तावलि, मदनकामरत्न, विद्याविनोद, पूज्यपाद-वैद्यक, वैद्यकशास्त्र, नाड़ीपरीक्षा आदि।
योगरत्नाकर में पूज्यपाद के नाम से अनेक रसयोगों को उद्धृत किया गया है, जिससे पूज्यपाद द्वारा रचित किसी विशाल रसग्रन्थ होने का संकेत मिलता है। इसी प्रकार 'वसवराजीयम्' नामक ग्रन्थ में भी पूज्यपाद के नाम से अनेक रसयोग उद्धृत किये गये हैं। जैसे-भ्रमणादि वातरोग में गन्धक रसायन योग के अन्त में लिखा है
अशीति वातरोगांश्च ह्याँस्यष्ठविधानि च।
मनुष्याणां हितार्थाय पूज्यपादेन निर्मितः।। इसी प्रकार कालाग्नि रुद्ररस के पाठ में भी पूज्यपाद के नाम का उल्लेख निम्न प्रकार से है
अशीति वातजान् रोगान् गुल्मं च ग्रहणीगदान्।
रसः कालाग्निरुद्रोऽयं पूज्यपादविनिर्मितः।। इसके अतिरिक्त वातादि रोग में त्रिकटुकादि नस्य के पाठ में-पूज्यपादकृतो योगो नराणां हितकाम्यया, ज्वरांकुशरस के पाठ में-पूज्यपादोपदिष्टोऽयं सर्वज्वरगजांकुशः, चण्डभानुरसे-नाम्नायं चण्डभानुः सकलगदहरो भाषितः पूज्यपादैः, शोफमुद्गर रसेशोफमुद्गर नामाऽयं पूज्यपादेन निर्मितः । पात्रकेसरि या पात्रस्वामी (छठी शती) ___ इनके विषय में कहा जाता है कि ये दक्षिण के अहिच्छत्रनगर के राजपुरोहित थे। ये समन्तभद्र की आप्तमीमांसा को पढ़कर अत्यन्त प्रभावित हुए और इन्होंने जैनधर्म अंगीकार कर लिया। ये दिगम्बर थे। बौद्धों द्वारा प्रतिपादित हेतु के लक्षण का खण्डन करने के लिए इन्होंने पद्मावती देवी की कृपा से 'त्रिलक्षणकदर्शन' नामक ग्रन्थ लिखा
632 :: जैनधर्म परिचय
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