________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
PN
दिगम्बर स्थलों पर जिनमूर्तियों में नवग्रह, बाहुबली एवं पारम्परिक यक्ष-यक्षी के अतिरिक्त चक्रेश्वरी, अम्बिका यक्षियों एवं लक्ष्मी-जैसी देवियों को भी जिन मूर्तिपरिकर में निरूपित किया गया। श्वेताम्बर स्थलों पर जिनमूर्तियों में लांछनों के स्थान पर पीठिका लेखों में उनके नामोल्लेख की परम्परा लोकप्रिय थी। जिनों के जीवनदृश्यों एवं समवसरणों के उदाहरण भी मुख्यतः श्वेताम्बर स्थलों पर ही सुलभ हैं। 11वीं से 13वीं शती ई. के मध्य के ये उदाहरण ओसियां, कुम्भारिया, माउण्ट आबू (विमल बसही, लूण बसही) एवं जालोर से मिले हैं ।। __श्वेताम्बर स्थलों पर जिनों के बाद 16 महाविद्याओं और दिगम्बर स्थलों पर यक्षयक्षियों का रूपायन ही सर्वाधिक लोकप्रिय था। 16 महाविद्याओं में रोहिणी, वज्रांकुशी, वज्रश्रृंखला, अप्रतिचक्रा, अच्छुप्ता एवं वैरोट्या की ही सर्वाधिक मूर्तियाँ मिली हैं। शान्तिदेवी, ब्रह्मशान्ति यक्ष, जीवन्तस्वामी महावीर, गणेश एवं 24 जिनों के माता-पिता के सामूहिक अंकन भी श्वेताम्बर स्थलों पर ही लोकप्रिय थे। सरस्वती, बलराम, कृष्ण, अष्टदिक्पाल, नवग्रह एवं क्षेत्रपाल आदि की मूर्तियाँ श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्परा के जैन पुरास्थलों पर समान रूप से उत्कीर्ण हुईं।
जैन युगलों (तीर्थंकरों के माता-पिता), राम-सीता एवं रोहिणी, मनोवेगा, गौरी, गांधारी यक्षियों और गरुड़ यक्ष की मूर्तियाँ केवल दिगम्बर-पुरास्थलों पर ही मिली हैं। दिगम्बर स्थलों पर परम्परा में अवर्णित प्रकार की भी कुछ मूर्तियाँ मिली हैं। द्वितीर्थी और त्रितीर्थी जिन मूर्तियों का अंकन और देवगढ़ से प्राप्त दो उदाहरणों में त्रितीर्थी
मूर्तिकला :: 691
For Private And Personal Use Only