________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कुम्भारिया के शान्तिनाथ एवं महावीर मन्दिरों, जालोर के पार्श्वनाथ मन्दिर और माउण्ट आबू
विमल सही और लूण वसही में द्रष्टव्य हैं। इनमें जिनों के पंचकल्याणकों (गर्भ, जन्म, दीक्षा, कैवल्य, निर्वाण-शयन के स्थान पर ध्यानस्थरूप में) एवं कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण घटनाओं को दर्शाया गया है, जिनमें भरत और बाहुबली के युद्ध, शान्तिनाथ के पूर्वजन्म में कपोत की प्राणरक्षा की कथा, नेमिनाथ के विवाह और वैराग्य, मुनिसुव्रत के जीवन की अश्वावबोध और शकुनिका विहार की कथाएँ तथा पार्श्वनाथ और महावीर के पूर्वजन्म की कथाएँ और तपस्या के समय उपस्थित उपसर्गों के दृश्यांकन मुख्य हैं।
दिगम्बर- स्थलों पर मध्ययुग में नेमिनाथ के साथ देवगढ़ (चित्र सं. 3) और मथुरा के उदाहरणों में उनके चचेरे भाई बलराम और वासुदेव कृष्ण, पार्श्वनाथ के साथ सर्पफणों के छत्र वाले चामरधारी धरणेन्द्र यक्ष एवं
छत्रधारिणी पद्मावती यक्षी तथा जिन मूर्तियों के परिकर में बाहुबली, क्षेत्रपाल, सरस्वती, लक्ष्मी आदि के अंकन विशेषतः उल्लेखनीय और क्षेत्रीय वैशिष्ट्य के रूप में द्रष्टव्य हैं। लगभग 10वीं शती ई. में जिन मूर्तियों के परिकर में 23 या 24 छोटी जिनमूर्तियों का अंकन भी प्रारम्भ हुआ । बंगाल की जिन मूर्तियों में परिकर की जिन-आकृतियाँ अधिकांशतः लांछन से भी युक्त हैं।
जिन चौमुखी या सर्वतोभद्रिका जिन मूर्तियों का उत्कीर्णन पहली शती ई. में मथुरा में प्रारम्भ हुआ और आगे की शताब्दियों में सभी क्षेत्रों में लोकप्रिय था । कुषाण मूर्तिलेखों में आये 'प्रतिमा सर्वतोभद्रिका' या 'सर्वतोभद्र प्रतिमा' का अर्थ है, वह प्रतिमा, जो सभी ओर से शुभ या मंगलकारी है । ° कुषाण चौमुखी मूर्तियों में चार दिशाओं में कायोत्सर्ग - मुद्रा में चार अलग-अलग जिन मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। जिन चौमुखी की धारणा को विद्वानों ने जिन समवसरण की प्रारम्भिक कल्पना पर आधारित और उसमें हुए विकास का सूचक माना है । परन्तु इस बात को स्वीकार करने में कई कठिनाइयाँ हैं । 22 समवसरण ऐसी देवनिर्मित सभा है, जहाँ कैवल्य-प्राप्ति के बाद प्रत्येक जिन अपना प्रथम उपदेश देते हैं । समवसरण तीन प्राचीरों वाला देवनिर्मित भवन है, जिसमें
694 :: जैनधर्म परिचय
For Private And Personal Use Only