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इन्हें सन्तुलन प्रदान करता है । मनुष्य की उन्नति और अवनति इस सन्तुलन के पलड़े पर ही निर्भर है
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मानव-जीवन के बाह्य व्यक्तित्व के तीन रूप और आन्तरिक व्यक्तित्व के तीन रूप तथा एक अन्त:करण - इन सात के प्रतीक सौर - जगत् में रहनेवाले सात ग्रहसूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि माने गये हैं । उपर्युक्त सात रूप सब प्राणियों के एक से नहीं होते हैं, क्योंकि जन्म-जन्मान्तरों के संचित, प्रारब्ध कर्म विभिन्न प्रकार के हैं, अतः प्रतीक रूप ग्रह अपने-अपने प्रतिरूप्य के सम्बन्ध में विभिन्न प्रकार की बातें प्रकट करते हैं ।
प्रतिरूप्यों की सच्ची अवस्था बीजगणित की अव्यक्तमान कल्पना द्वारा निष्पन्न अंकों के समान प्रकट हो जाती है ।
भारतीय दर्शन में भी " यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे" का सिद्धान्त प्राचीन काल से प्रचलित है। तात्पर्य यह है कि वास्तविक सौर - जगत में सूर्य, चन्द्र आदि ग्रहों के भ्रमण के नियम कारण हैं, वे ही नियम प्राणिमात्र के शरीर में स्थित सौर- जगत् के ग्रहों के भ्रमण करने में भी काम करते हैं । अतः आकाश - स्थित ग्रह शरीर स्थित ग्रहों के प्रतीक हैं।
आन्तरिक व्यक्तित्व कारक
अतः यह स्पष्ट है कि सौर- जगत् के साथ ग्रह मानव जीवन के विभिन्न अवयवों के प्रतीक हैं । इन सातों ग्रहों के क्रिया-फल द्वारा ही जीवन का संचालन होता है
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बुध
654 :: जैनधर्म परिचय
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बाह्य व्यक्तित्व
कारक
बाह्य व्यक्तित्व कारक - बृहस्पति, मंगल, चन्द्रमा आन्तरिक व्यक्तित्व कारक - शुक्र, बुध, सूर्य अन्तःकरण कारक - शनि
ब्रहस्पति
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अन्तःकरण
कारक
शानि