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तीन रत्न के ऊपर अर्धचन्द्र - जीव के मोक्ष या निर्वाण की कल्पना
की गई है अर्थात् सिद्धशिला को लक्षित करता है । जीव स्वर्ग, मर्त्य एवं पाताल लोक में सर्वत्र व्याप्त हैं । नारकी जीव धर्म से देवता बन सकता है और रत्नत्रय को धारण कर मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। अर्द्धचन्द्र के ऊपर जो बिन्दु है, वह उत्तम सुख का प्रतीक है । यथाबिन्दुः स्यादुत्तमं सुखम्।
जैन संस्कृति में स्वस्तिक का विशेष महत्त्व है और इसलिए इसे ध्वज के बीच में रखा गया है । चतुर्गति संसार के परिभ्रमण का कारण है, इससे ऊपर उठकर अहिंसा को आचरण में और अर्हन्त को हृदय में धारण कर हम निर्वाण को प्राप्त कर सकें।
जैन प्रतीक - प्रतीक में भी स्वस्तिक को त्रिलोक के आकार पुरुषाकार में अपनाया गया है, जिसका जैन शासन में महत्त्वपूर्ण स्थान है और यह सर्वथा मंगलकारी है। स्वस्तिक के ऊपर तीन बिन्दु रत्नत्रय के द्योतक हैं, जो रत्नत्रय को दर्शाते हैं । रत्नत्रय के ऊपर अर्धचन्द्र सिद्धशिला को लक्षित करता है । स्वस्तिक के नीचे जो हाथ का चिह्न दिया गया है, वह अभय का बोध देता है तथा हाथ में भी जो चक्र दिया गया है, वह त्रिलोकनाथ धर्मचक्र के अधिनायक भगवान् आदि पुरुष वृषभनाथ तीर्थंकर के अधर्म पर विजय का तथा धर्म प्रभावना का द्योतक है । निःस्पृह प्रभु ने सूर्य के समान नाना देशों में व्याप्त अज्ञानान्धकार के निवारणार्थ विचरण किया। अतिशयों से सम्पन्न भगवान् वृषभदेव ने जहाँ विहार किया, वहाँ सुख-शान्ति का प्रसार रहा, क्योंकि प्रभु के मंगल-विहार प्रदेश में रोग, ग्रहपीड़ा, भय तथा शोक की आशंका के लिए भी स्थान नहीं था । यथात्रिजगद्वल्लभः श्रीमान् भगवानादिपूरुषः। प्रचक्रे विजयोद्योगं धर्मचक्राधिनायकाः ॥
*अण्णोष उतारेण जीवा'
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आचार्य जिनसेन, महापुराण, 25 / 244 अथ पुण्यैः समाकृष्टो भव्यानां निःस्पृहः प्रभुः । देशे-देशे तमश्छेत्तुं व्यचरद् भानुमानिव ॥ यत्रातिशयसम्पन्नो विजहार जिनेश्वरः । तत्र रोगग्रहातंकशोकशंकापि दुर्लभा ॥
धर्मशर्माभ्युदय, 21 / 166, 173
तीर्थंकर वृषभदेव से महावीर पर्यन्त तक का धर्मचक्र जगत् में जयवन्त होकर प्रवर्तित हो रहा है। इस धर्मचक्र का सम्यग्दर्शन रूप मध्य तुम्ब (केन्द्र) है। आचारांगादिक द्वादशांग उसके आरे (आरा) हैं। पंच महाव्रत आदि रूप उसके नेमि (धुरा) हैं। तप रूप उसका आधार है। ऐसा भगवान् जिनेन्द्रदेव का धर्मचक्र अष्टकर्मों को जीतकर परम विजय को प्राप्त होता है । यथा
672 :: जैनधर्म परिचय
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