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होते हुए उनकी प्रतीकात्मक भावना एक समान है।
अष्ट प्रातिहार्य
जिनेन्द्र भगवान् की समवसरण स्थली में अनेक मंगल द्रव्य रूपी सम्पदाएँ सुशोभित रहती हैं। उन्हीं में अष्ट प्रातिहार्य मंगल के प्रतीक हैं। ___ अशोक वृक्ष- जिन वृक्षों के नीचे भगवान् तीर्थंकर को केवलज्ञान हुआ था, वे ही अशोक वृक्ष हैं। अशोक वृक्ष सुख व शान्ति के प्रतीक हैं, जिसके नीचे आकर सारे शोक
दूर हो जाते हैं।
सिंहासन- अशोक वृक्ष के समीप तीर्थंकर का विशाल सिंहासन शोभायमान होता है। सिंहासन श्रेष्ठता का प्रतीक है।
तीन छत्र- तीर्थंकरों के मस्तकों के ऊपर तीन छत्र शोभायमान होते हैं। यह त्रिलोकवर्ती प्रभुता के जीवन्त प्रतीक हैं।
भामण्डल- जिनेन्द्र भगवान के आत्म
_प्रकाश का द्योतक है। यह करोड़ों सूर्यों के सदृश् उज्ज्वल तीर्थंकरों का प्रभामण्डल जयवन्तता का प्रतीक है।
दिव्यध्वनि- यह महादिव्य-ध्वनि सर्वभाषामयता की प्रतीक है। पुष्प वृष्टि- पुष्प वृष्टि को आनन्द व मंगल का प्रतीक माना है।
चौंसठ चमर- जैन आगम में जिनेन्द्र भगवान के 64 चमर कहे गये हैं और ये ही चमर चक्रवर्ती से लेकर राजा पर्यन्त आधे-आधे होते है। चक्रवर्ती के बत्तीस, अर्धचक्री के सोलह, मण्डलेश्वर के आठ, अर्धमण्डलेश्वर के चार, महाराज के दो और राजा के एक चमर होता है। अत: चमर प्रभुता के प्रतीक माने गये हैं।
दुन्दुभिनाद- यह सर्वलोकव्यापी कीर्ति का प्रतीक है।
दुमा
अष्ट मंगल द्रव्य ___ जैनधर्म में मंगल चिह्नों की नामावली में अष्ट मंगल द्रव्य का विशिष्ट स्थान है। तीर्थंकर भगवान् के जन्म के समय दिक्कुमारियाँ इन्हीं अष्ट मंगल द्रव्यों को लेकर इन्द्राणी के आगे-आगे चलती है। भगवान् की समवसरण स्थली में भी चारों दिशाओं में गोपुर द्वारों पर यह रखे जाते हैं। यह भी संख्या में आठ है। यथा
भिंगार-कलस-दप्पण-चामर-धय-वियण-छत्त-सुपइट्ठा।
अद्वत्तर-सय-संखा, पत्तेक्कं मंगला तेसं॥ भंगार, कलश, दर्पण, चंवर, ध्वजा, बीजना, छत्र और सुप्रसिद्ध (ठोना) ये आठ
674 :: जैनधर्म परिचय
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