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भारी
मंगल द्रव्य हैं।
कलश- कलश सृजन, सौभाग्य एवं पूर्णता का द्योतक है।
छत्र- श्रेष्ठता का प्रतीक है। जिनेन्द्र भगवान की तीन लोक में प्रभुता को दर्शाता
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गार
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ध्वजा- भगवान के तीनों लोक के । स्वामित्व को प्रकट करती है।
दर्पण- आत्मदर्शन का प्रतीक है। व्यजन (पंखा)- शीतलता का प्रतीक है। चमर- चमर भगवान के अद्वितीय जगत के प्रभुत्व को सूचित करता है।
झारी- एक प्रकार का घट जिसमें पवित्र जल रहता है, जिससे जिनेन्द्र भगवान् के चरण धोये जाते है व अभिषेक किया जाता है। यह पवित्रता का द्योतक है।
सुप्रसिद्ध (ठोना)-यह भगवान् की त्रिलोक-पूज्यता का प्रतीक है। बीजाक्षर
श्री- शक्ति का प्रतीक है। श्री बीजाक्षर एक प्रकार का प्रतिष्ठा पद है और प्रतिष्ठा के अनुकूल श्री 105,108,1008 आदि संख्याओं के साथ प्रयोग में आता है। भगवत्त्व के समान 'श्री' तत्त्वतः भी विभु है। यन्त्रों में भी श्री को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। श्री मोक्ष लक्ष्मी का भी प्रतीक है। भगवान् जिनेन्द्र की पूजन थाली में श्री बीजाक्षर श्रेय का प्रतीक
ह्रीं- बीजाक्षर कल्याणवाचक है। यह चौबीस तीर्थंकर का प्रतीक रूप है। ह्रीं में - ह-सूर्य शक्ति का बीज है 'र' अग्निबीज शक्तिप्रस्फोटक, समस्त प्रधान बीजों का जनक है। 'ई' अमृतबीज का प्रतीक है ज्ञानवर्धक है। 'म' शब्द सिद्धिदायक और पारलौकिक सिद्धियों का प्रदाता है। ह्रीं को सभी तीर्थंकरों के नामाक्षरों का वाचक कहा गया है। ह्रीं बीजाक्षर के चन्द्र में चन्द्रप्रभु व पुष्पदन्त भगवान स्थापित हैं चन्द्रबिन्दु में नेमिनाथ व मुनिसुव्रत नाथ, ह्रीं की कला में पद्मप्रभु 'ई' की मात्रा में सुपार्श्वनाथ व पार्श्वनाथ प्रतिष्ठित हैं। 'ह' में अन्य सोलह तीर्थंकर भगवान् प्रतिबिम्बित होते हैं। ह्रीं के समान कलों को लक्ष्मी प्राप्ति वाचक, क्षीं को शान्तिवाचक, क्ष्वी को भोग वाचक, 'प्री' स्तम्भ वाचक प्रतीक हैं। यह समस्त बीजाक्षर अन्त:करण और वृत्ति की शुद्ध प्रेरणा के प्रतीक हैं। मानस्तम्भ
समवसरण रचना का ही यह एक महत्त्वपूर्ण प्रतीक है। यह तीर्थंकर की महत्ता का प्रतीक है। मानस्तम्भ की ऊँचाई देखकर मिथ्यादृष्टि लोगों का अभिमान नष्ट हो जाता है।
प्रतीक दर्शन :: 675
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