________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हुए वानर, (6) कौआ आदि पक्षियों के द्वारा उपद्रव किए हुये उलूक, ( 7 ) आनन्द करते हुए भूत, (8) जिसका मध्यभाग सूखा हुआ है और किनारों पर खूब पानी भरा हुआ है ऐसा तालाब (9) धूलि से धूसरित रत्नों की राशि, (10) जिसकी पूजा की जा रही है ऐसा नैवेद्य को खानेवाला कुत्ता, (11) जवान बैल, ( 12 ) मंडल से युक्त चन्द्रमा, (13) जो परस्पर में मिल रहे हैं और जिनकी शोभा नष्ट हो रही है ऐसे दो बैल, (14) जो दिशारूपी स्त्रीरत्नों के-से बने हुए आभूषण के समान है तथा जो मेघों से आच्छादित हो रहा है ऐसा सूर्य, (15) छायारहित सूखा वृक्ष और (16) पुराने पत्तों का समूह ।
हे ज्ञानियों में श्रेष्ठ ! आज मैंने रात्रि के समय ये सोलह स्वप्न देखे हैं । हे नाथ, इनके फल के विषय में जो मुझे सन्देह है, उसे दूर कर दीजिए। ऐसा भरत चक्रवर्ती ने आदिनाथ भगवान् से कहा । आदिनाथ भगवान् अपने दिव्यज्ञान से इस प्रकार कहते हैं - तूने जो स्वप्न में इस पृथ्वी पर अकेले विहार कर पर्वत के शिखर पर चढ़े तेईस सिंह देखे हैं उसका स्पष्ट फल यही समझ कि श्रीमहावीर स्वामी को छोड़कर शेष तेईस तीर्थंकरों के समय में दुष्ट नयों की उत्पत्ति नहीं होगी । तदनन्तर दूसरे स्वप्न में अकेले सिंह के बच्चे के पीछे चलते हुए हरिणों का समूह देखने से यह प्रकट होता है कि श्री महावीर स्वामी के तीर्थ में परिग्रह को धारण करनेवाले बहुत-से कुलिंगी हो जावेंगे। बड़े हाथी के उठाने योग्य बोझ से जिसकी पीठ झुक गयी है, ऐसे घोड़े के देखने से यह मालूम होता है कि पंचमकाल के साधु तपश्चरण के समस्त गुणों को धारण करने में समर्थ नहीं हो सकेंगे। कोई मूलगुण और उत्तरगुणों के पालने करने की प्रतिज्ञा लेकर उनके पालन करने में आलसी हो जायेंगे, कोई उन्हें मूल से ही भंग कर देंगे और कोई उनमें मन्दता या उदासीनता को प्राप्त हो जायेंगे। सूखे पत्ते खानेवाले बकरों का समूह देखने से यह मालूम होता है कि आगामी काल में मनुष्य सदाचार को छोड़कर दुराचारी हो जायेंगे । गजेन्द्र के कन्धे पर चढ़े हुए वानरों के देखने से जान पड़ता है कि आगे चलकर प्राचीन क्षत्रिय वंश नष्ट हो जाएँगे और नीच कुल वाले पृथ्वी का पालन करेंगे। कौवों के द्वारा उलूक को त्रास दिया जाना देखने से प्रकट होता है कि मनुष्य धर्म की इच्छा से जैनमुनियों को छोड़कर अन्य मत के साधुओं के समीप जायेंगे। नाचते हुए बहुत-से भूतों के देखने से मालूम होता है कि प्रजा के लोग मिथ्यात्व आदि कारणों से व्यन्तरों को देव समझकर उनकी उपासना करने लगेंगे। जिसका मध्यभाग सूखा हुआ है, ऐसे तालाब के चारों ओर पानी भरा हुआ देखने से प्रकट होता है कि धर्म आर्यखण्ड से हटकर प्रयत्नवासी- म्लेच्छ खंडों में ही रह जायेगा । धूलि से मलिन हुए रत्नों की राशि के देखने से यह जान पड़ता है कि पंचमकाल में ऋद्धिधारी उत्तम मुनि नहीं होंगे। आदर-सत्कार से जिसकी पूजा की गयी है, ऐसे कुत्ते को नैवेद्य खाते हुए देखने से मालूम होता है कि व्रतरहित ब्राह्मण गुणी पात्रों के समान सत्कार पाएंगे। ऊँचे स्वर से शब्द करते हुए तरुण बैल का विहार देखने से सूचित होता है कि लोग तरुण अवस्था में ही मुनिपद में ठहर सकेंगे, अन्य अवस्था में नहीं । परिमण्डल
678 :: जैनधर्म परिचय
For Private And Personal Use Only