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पाँच वर्णों की आभा से युक्त विजया देवी पाँच वर्णों से युक्त ध्वजा को हाथ में धारण करती है।
'मालाहरिकमलांबरगरुडेभगवेशचक्राशिखिहसैः। उपलक्षितध्वजानि न्यसामि दशदिक्षु पंचवर्णानि ॥'
नेमिचन्द्रदेव, प्रतिष्ठातिलक, ध्वज-पूजन-विधि, 1, पृष्ठ 118 मालाहरि यह श्लोक बोल कर दस ध्वजाओं की दस दिशाओं में स्थापना करें। दस ध्वजाओं पर क्रम से इस प्रकार चिह्न होते हैं- माला, सिंह, कमल, वस्त्र, गरुड़, हाथी, बैल, चकवा, मोर, हंस। ये ध्वजाएँ पंचवर्ण वाली होती हैं। - पंचवर्ण में दिगम्बर मुनि की मयूरपिच्छि- दिगम्बर जैन मुनि के करकमल में सदा मयूरपिच्छी होती है। वे इसके बिना कहीं आ-जा नहीं सकते हैं। यह मयूरपंख पाँच गुणों से सम्पन्न एवं पाँच वर्ण वाला होता है। यथा
'रजसेदाणमगहणं सद्दवसुकुमालदा लघुत्तं च। जत्थेदे पंचगुणा तं पडिलेहणं पसंसंति॥'
मूलाराधना, 98 इस प्रकार पिच्छि पंचगुण विभूषित है। मूलाराधना में पिच्छि के अन्य पाँच गुण बताते हुए कहा है कि रज और स्वेद का अग्रहण, मृदुता, सुकुमारता और लघुत्व (हल्कापन) जिस पिच्छि में ये पंचगुण विद्यमान हों, उस प्रतिलेखन-उपकरण की प्रशंसनीयता असन्दिग्ध है। 'छत्रार्थं चामरार्थं च रक्षार्थं सर्वदेहिनाम्। यन्त्रमन्त्रप्रसिद्ध्यर्थं पंचैते पिच्छिलक्षणम्॥'
मन्त्रलक्षणशास्त्र मन्त्रलक्षण शास्त्र कहता है कि पिच्छि आवश्यकता होने पर छत्र भी है और चामर भी, यन्त्र और मन्त्र की प्रसिद्धि (सिद्धि) के लिए भी इसका व्यवहार किया जाता है और सम्पूर्ण प्राणियों की रक्षा के लिए तो है ही।
'मयूरपिच्छं मृदुपंचवर्ण।
मिथ्यात्वनाशं मदसिंहराजम्॥' पंचवर्ण की ध्वजा एवं साहू नट्टल- 11वीं शताब्दी में राजा अनंगपाल के प्रधानमन्त्री साहू नट्टल ने तीर्थंकर वृषभदेव का मन्दिर बनवाया था और उसमें पंचवर्ण की ध्वजा
प्रतीक दर्शन :: 683
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