________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चौथी शती ई. का उत्तरार्ध), प्रतिहार (नागभट्ट द्वितीय, नौवीं शती ई.), चौलुक्य (कुमारपाल, विमल, पृथ्वीपाल, तेजपाल, 12वीं-13वीं शती ई.), होयसल (विष्णुवर्धन की रानी शान्तला, 12वीं शती ई.), गंग (राचमल्ल के सामन्त एवं सेनापति चामुण्डराय, 10वीं शती ई.) तथा राष्ट्रकूट (अमोघवर्ष, नौवीं शती ई.) शासक और उनके शासनाधिकारी मुख्य हैं। वस्तुत: समकालीन धार्मिक परम्पराओं के साथ परस्परपूर्ण उदार सम्बन्धों के कारण भारत के प्रायः सभी क्षेत्रों के शासकों (पाल शासकों के अतिरिक्त) ने जैन धर्म के प्रति आदर का भाव रखा और जैनकला के विकास के लिए शासकीय समर्थन के साथ ही श्रेष्ठी एवं समाज के समृद्धजनों द्वारा जैन कला को दिये जाने वाले संरक्षण को भी प्रोत्साहित किया। खजुराहो के पार्श्वनाथ (मूलतः आदिनाथ) मन्दिर (954 ई.) के निर्माणकर्ता व्यापारी पाहिल का चन्देल शासक धंग द्वारा सम्मान किया जाना,-ऐसा ही एक विशिष्ट उदाहरण है। अनेक कलाकेन्द्रों पर वैदिक-पौराणिक (ब्राह्मण) एवं जैनधर्म से सम्बन्धित मन्दिरों तथा मूर्तियों का साथ-साथ निर्माण एवं विकास तथा उन्हें प्राप्त बहुविध संरक्षण भारत की समन्वय-सद्भाव की संस्कृति की राष्ट्रीय चेतना और
मूर्तिकला :: 687
For Private And Personal Use Only