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सुनाई पड़े, तो बुलाने के लिए सूचना समझनी चाहिए। पोदकी की 'कीतुकीतु' शब्द कामनासिद्धि का सूचक है।। ___ इस निमित्त में काक, उल्लू, बिल्ली, कुत्ता आदि के शब्दों का विशेष रूप से विचार किया जाता है। ___ मुर्गा, हाथी, मोर और शृगाल क्रूर शब्द करें, तो अनेक प्रकार के भय, मधुर शब्द करने से इष्ट-लाभ तथा अति-मधुर शब्द करने से धनादि का शीघ्र लाभ होता है। कबूतर और तोते का रुदन सर्वथा अशुभकारक माना जाता है।
गाय, बैल, बकरी, भैंस इनकी मधुर, कोमल, कर्कश एवं मध्यम ध्वनियों के अनुसार फलादेशों का निरूपण किया है।
रोने की ध्वनि तथा हँसने की ध्वनि सभी पशु-पक्षियों की अशुभ मानी गयी है।
भौमनिमित्त ज्ञान- भूमि के रंग, चिकनाहट, रूखेपन आदि के द्वारा शुभाशुभत्व अवगत करना भौम-निमित्त कहलाता है। इस निमित्त में गृह-निर्माणयोग्य भूमि, देवालयनिर्माणयोग्य भूमि, जलाशय-निर्माणयोग्य भूमि आदि बातों की जानकारी प्राप्त की जाती है। भूमि के रूप, रस, गन्ध और स्पर्श द्वारा उसके शुभाशुभत्व को जाना जाता है।
भूमि के नीचे जल का विचार करते समय बताया गया है कि जिस स्थान की मिट्टी पाण्ड़ और पीत वर्ण की हो तथा उसमें से शहद-जैसी गन्ध निकलती हो, वहाँ जल निकलता है। नीलकमल के रंग की मिट्टी हो, वहाँ खारे जल का स्रोत मिलता है।
किसी भी मकान में कहाँ अस्थि है और कहाँ पर धन-धान्यादि है, इसकी जानकारी भी भूमि-गणित के अनुसार की जाती है। ज्योतिषशास्त्र के विषयों में ऐसे कई प्रकार के गणित हैं, जो भूमि के नीचे की वस्तुओं पर प्रकाश डालते हैं। बताया गया है कि जिस स्थान की मिट्टी हाथी के मद के समान गन्ध वाली हो या कमल के समान गन्ध वाली हो और जहाँ प्रायः कोयल आया-जाया करती हो, और गोहद ने अपना निवास बनाया हो, इस प्रकार की भूमि में नीचे स्वर्णादि द्रव्य रहते हैं।
दूध के समान गन्ध वाली भूमि के नीचे रजत; मधु और पृथ्वी के समान गन्ध वाली भूमि के नीचे रजत और ताम्र; कबूतर की बीट के समान गन्ध वाली भूमि के नीचे पत्थर और जल के समान गन्धवाली भूमि के नीचे अस्थियाँ मिलती हैं।
छिन्ननिमित्तज्ञान- वस्त्र, शस्त्र, आसन और छत्रादि को छिदा हुआ देखकर शुभाशुभ का फल कहना छिन्न-निमित्त-ज्ञान के अन्तर्गत है। बताया गया है कि नये वस्त्र, आसन, शैया, शस्त्र, जूता आदि के नौ भाग करके विचार करना चाहिए। वस्त्रों के कोणों के चार भागों में देवता, पाशन्त-मूल भाग के दो भागों में मनुष्य और मध्य के तीन भागों में राक्षस बसते हैं। नया वस्त्र या उपर्युक्त नयी वस्तुओं में स्याही, गोबर, कीचड़ आदि लग जाये, उपर्युक्त वस्तुएँ जल जायें, फट जायें, कट जायें, तो अशुभ फल समझना चाहिए। राक्षस के भागों में वस्त्र में छेद हो जाये, तो वस्त्र के स्वामी को रोग या 660 :: जैनधर्म परिचय
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