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पुष्पित था । इस काल में होनेवाले वराहमिहिर - जैसे प्रसिद्ध गणक ने सिद्धसेन और देवस्वामी का स्मरण किया है तथा दो चार योगों में मतभेद दिखलाया है तथा इसी शताब्दी के कल्याणवर्मा ने कनकाचार्य का उल्लेख किया है । यह कनकाचार्य भी जैन गणक प्रतीत होते हैं । इन जैनाचार्यों के ग्रन्थों का पता अद्यावधि नहीं लग पाया है, पर इतना निस्सन्देह कहा जा सकता है कि ये जैन गणक ज्योतिषशास्त्र के महान प्रर्वतकों में से थे। संहिताशास्त्र के रचयिताओं में वामदेव का नाम भी बड़े गौरव के साथ लिया गया है। वह वामदेव लोकशास्त्र के वेत्ता, गणितज्ञ एवं संहिताशास्त्र में धुरीण कहे गये हैं । इस प्रकार फलित जैन ज्योतिष विकासशील रहा है।
संकलन आभार
1. विशेष जानने के लिए देखें: 'स्वप्न और उसका फल जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग - 11, किरण 1
2. भारतीय ज्योतिष - डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री, ज्योतिषाचार्य 3. केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि- डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री, ज्योतिषाचार्य 4. भद्रबाहुसंहिता - डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री, ज्योतिषाचार्य
664 :: जैनधर्म परिचय
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