________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ऊर्ध्वरेखा, अन्तःकरण रेखा, स्त्रीरेखा, सन्तानरेखा, समुद्रयात्रा रेखा या मणिबन्ध रेखा आदि रेखाओं का विचार किया गया है। सभी ग्रहों के पर्वत भी सामुद्रिक शास्त्र में बतलाये गये हैं। इनके फल का विश्लेषण बहुत सुन्दर ढंग से जैनाचार्यों ने किया है। __ प्रश्ननिमित्तज्ञान शास्त्र- प्रश्नशास्त्र निमित्त-ज्ञान का एक प्रधान अंग रहा है। इसमें धातु, मूल, जीव, नष्ट, मुष्टि, लाभ, हानि, रोग, मृत्यु, भोजन, शयन, जन्म, कर्म, सेनागमन, नदियों की बाढ़, अवृष्टि, अनावृष्टि, अतिवृष्टि, फसल, जय-पराजय, लाभहानि, विद्यासिद्धि, विवाह, सन्तानलाभ, यश प्राप्ति एवं जीवन के विभिन्न प्रश्नों का उत्तर दिया गया है।
जैनाचार्यों ने अष्टांगनिमित्त पर अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। भद्रबाहुसंहिता इस विषय का एक प्रमुख ग्रन्थ है।
प्रश्नशास्त्र निमित्त-शास्त्र का वह अंग है, जिसमें बिना किसी गणित क्रिया के त्रिकाल की बातें बताई जाती हैं।
प्रश्ननिमित्त का विचार तीन प्रकार से किया जाता है- प्रश्नाक्षर-सिद्धान्त, प्रश्नलग्नसिद्धान्त और स्वरविज्ञान सिद्धान्त। ___ प्रश्नाक्षर-सिद्धान्त का आधार मनोविज्ञान है; यत:बाह्य और आभ्यन्तरिक दोनों प्रकार की विभिन्न परिस्थितियों के अधीन मानव-मन की भीतरी तह में जैसी भावनाएँ छिपी रहती हैं, वैसे ही प्रश्नाक्षर निकलते हैं। अतः प्रश्नाक्षरों के निमित्त को लेकर फलादेश का विचार किया जाता है। केवलज्ञानप्रश्नचूड़ामणि' प्रश्नाक्षर-सिद्धान्त का एक महत्त्वपूर्ण जैन ग्रन्थ है। दो-चार ग्रन्थों में प्रश्न की प्रणाली प्रश्न-लग्न के अनुसार मिलती है। यदि लग्न या लग्नेश बली हुए और स्वसम्बन्धी ग्रहों की दृष्टि हुई तो कार्य की सिद्धि और इसके विपरीत में असिद्धि होती है।
चन्द्रोन्मीलन प्रश्न में चर्या, चेष्टा एवं हाव-भाव आदि से प्रश्नों के उत्तर दिये हैं। जैसे हँसते हुए प्रश्न पूछने से कार्य सिद्ध होता है और उदासीन रूप से प्रश्न करने पर कार्य असिद्ध रहता है। वास्तव में जैन प्रश्नशास्त्र बहुत उन्नत है। ज्योतिष के अंगों में जितना अधिक यह शास्त्र विकसित हुआ है, उतना दूसरा शास्त्र नहीं।
स्वप्ननिमित्तज्ञान'– जैन मान्यता में स्वप्न संचित-कर्मों के अनुसार घटित होने वाले शुभाशुभ फल के द्योतक बताये गये हैं। स्वप्नशास्त्रों के अध्ययन से स्पष्ट अवगत होता है कि कर्मबद्ध प्राणिमात्र की क्रियाएँ सांसारिक जीवों को उसके भूत और भावि जीवन की सूचना देती हैं।
स्वप्न का अन्तरंग कारण ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तराय के क्षयोपशम के साथ मोहनीय का उदय है। जिस व्यक्ति के जितना अधिक इन कर्मों का क्षयोपशम होगा, उस व्यक्ति के स्वप्नों का फल भी उतना ही अधिक सत्य निकलेगा। तीव्रकर्मों
662 :: जैनधर्म परिचय
For Private And Personal Use Only