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उसे अन्य स्थूल शरीर की प्राप्ति में सहायक होता है।
इस स्थूल भौतिक शरीर में विशेषता यह है कि इसमें प्रवेश करते ही आत्माजन्म-जन्मान्तरों के संस्कारों की निश्चित स्मृति को खो देता है।
इसलिए ज्योतिर्विदों ने प्राकृतिक ज्योतिष के आधार पर कहा है कि यह आत्मा मनुष्य के वर्तमान स्थूल शरीर में रहते हुए भी एक से अधिक जगत् के साथ सम्बन्ध रखता है। ___ मानव का भौतिक शरीर प्रधानतः ज्योतिः, मानसिक और पौद्गलिक इन तीनों उपशरीरों में विभक्त है। ___ यह ज्योति: उपशरीर (Astral's body) द्वारा नक्षत्र जगत्; मानसिक शरीर द्वारा मानसिक जगत् से और पौद्गलिक उपशरीर द्वारा भौतिक जगत् से सम्बद्ध है। अत: मानव प्रत्येक जगत् से प्रभावित होता है तथा अपने भाव, क्रिया द्वारा प्रत्येक जगत् को प्रभावित करता है।
उसके वर्तमान शरीर में ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य आदि अनेक शक्तियों का धारक आत्मा सर्वत्र व्यापक है तथा शरीर प्रमाण रहने पर भी अपने चैतन्य क्रियाओं द्वारा विभिन्न जगतों में अपना कार्य करता है।
मनोवैज्ञानिकों ने आत्मा की इस क्रिया की विशेषता के कारण ही मनुष्य के व्यक्तित्व को बाह्य और आन्तरिक दो भागों में विभक्त किया है।
बाह्य व्यक्तित्व वह है, जिसने भौतिक शरीर के रूप में अवतार लिया है। ___ आन्तरिक व्यक्तित्व वह है, जो अनेक बाह्य व्यक्तित्वों की स्मृतियों, अनुभवों और प्रवृत्तियों का संश्लेषण अपने में रखता है।
बाह्य और आन्तरिक इन दोनों व्यक्तित्व सम्बन्धी चेतना के ज्योतिष में विचार, अनुभव और क्रिया ये तीन रूप माने गये हैं। बाह्य व्यक्तित्व के तीन रूप आन्तरिक व्यक्तित्व के इन तीनों रूप से सम्बद्ध हैं, पर आन्तरिक व्यक्तित्व के तीन रूप अपनी निजी विशेषता और शक्ति रखते हैं, जिससे मनुष्य के भौतिक (क्रिया), मानसिक (अनुभव) और आध्यात्मिक (विचार) इन तीनों जगतों का संचालन होता है।
मनुष्य का अन्त:करण इन तीनों व्यक्तित्व के उक्त तीनों रूपों को मिलाने का कार्य करता है।
दूसरे दृष्टिकोण से यह कहा जा सकता है कि ये तीनों रूप एक मौलिक अवस्था में आकर्षण और विकर्षण की प्रवृत्ति द्वारा अन्तःकरण की सहायता से सन्तुलित रूप को प्राप्त होते हैं। ____ तात्पर्य यह है कि आकर्षण की प्रवृत्ति बाह्य व्यक्तित्व को और विकर्षण की प्रवृत्ति आन्तरिक व्यक्तित्व को प्रभावित करती है और इन दोनों के बीच में रहनेवाला अन्त:करण
ज्योतिष : स्वरूप और विकास :: 653
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