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और ग्रहों के स्वरूप, रंग, दिशा, तत्त्व, धातु आदि के विवेचन भी इसके अन्तर्गत आ गये।
आदिकाल के अन्त में ज्योतिष के होरा, गणित या सिद्धान्त और फलित ये तीनों भेद स्वतन्त्र रूप से माने जाने लगे।
ग्रहों की स्थिति, अयनांश, पात आदि गणित ज्योतिष के अन्तर्गत, जन्मकालीन ग्रहों की स्थिति के अनुसार व्यक्ति के फलाफल का निरूपण होरा ज्योतिष के अन्तर्गत तथा शुभाशुभ समय का निर्णय, विधायक, यज्ञ-यगादि कार्यों के करने के लिए समय और स्थान का निर्धारण फलित ज्योतिष का विषय माना गया।
पूर्वमध्यकाल की अन्तिम शताब्दियों में सिद्धान्त ज्योतिष के स्वरूप में भी विकास हुआ, लेकिन खगोलीय निरीक्षण और ग्रहवेध की परिपाटी के कम हो जाने से गणित के कल्पना जाल द्वारा ग्रहों के स्थानों का निश्चय करना सिद्धान्त ज्योतिष के अन्तर्गत आ गया तथा पूर्व मध्यकाल के प्रारम्भ में ज्योतिष का अर्थ स्कन्धत्रय-होरा, सिद्धान्त और संहिता के रूप में ग्रहण किया गया, परन्तु इस युग के मध्य में संशोधन देखे और आगे जाकर यह पंचरूपात्मक-होरा, गणित या सिद्धान्त, संहिता, प्रश्न और शकुन रूप हो गया।
ज्योतिष का उद्भव-स्थान और काल
योगविज्ञान भारतीय आचार्यों की विभूति माना जाता है। यहाँ के ऋषियों ने योगाभ्यास द्वारा अपनी सूक्ष्म प्रज्ञा से शरीर के भीतर ही सौरमण्डल के दर्शन किये और अपना निरीक्षण कर आकाशीय सौरमण्डल की व्यवस्था की। अंकविद्या जो इस शास्त्र का प्राण है, उसका आरम्भ भी भारत में हुआ। ___मध्यकालीन भारतीय संस्कृति नामक पुस्तक में श्री ओझा जी ने लिखा है-"भारत ने अन्य देशवासियों को जो अनेक बातें सिखायीं, उनमें सबसे अधिक महत्त्व अंकविद्या का है। संसार-भर में गणित, ज्योतिष विज्ञान की आज जो उन्नति पाई जाती है, उसका मूल कारण वर्तमान अंक क्रम है, जिसमें 1 से 9 तक के अंक और शून्य-इन 10 चिह्नों में अंकविद्या का सारा काम चल रहा है। यह क्रम भारतवासियों ने ही निकाला
और उसे सारे संसार ने अपनाया।" इस उदाहरण से स्पष्ट है कि प्राचीनतम काल में भारतीय-ऋषि खगोल और ज्योतिषशास्त्र से परिचित थे।
ऋग्वेद और शतपथ ब्राह्मण आदि ग्रन्थों के अध्ययन से पता चलता है कि आज से कम से कम 28000 वर्ष पहले भारतीयों ने खगोल और ज्योतिषशास्त्र का मन्थन किया था। वे आकाश चमकते हुए नक्षत्रपुंज, शशिपुंज, देवतापंज, आकाशगंगा. निहारिका आदि के नाम, रूप, रंग, आकृति से पूर्णतया परिचित थे।
कौन-सा नक्षत्र ज्योतिपूर्ण है, नभोमण्डल में ग्रहों के संचार से आकर्षण कैसे होता
ज्योतिष : स्वरूप और विकास :: 651
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