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श्रीधरदेव (1500 ई.)
यह दिगम्बर जैन पण्डित था। इनका 'जगदेक महामन्त्रवादि' विशेषण मिलता है। यह विजयनगर राज्य का निवासी था। इसने 1500 ई. में 'वैद्यामृत' की रचना की है। इसमें 24 अधिकार हैं। यह कन्नडी भाषा में है। बाचरस (1500 ई.)
यह दिगम्बर जैन विद्वान् था। यह विजयनगर के हिन्दू राज्य का निवासी था। इसने 1500 ई. में 'अश्ववैद्य' की रचना की थी। इसमें अश्वों (घोड़ों) की चिकित्सा का वर्णन है। यह कन्नड़ी भाषा में है। पद्मरस (1527 ई.)
मैसूर नरेश चामराज के आदेश से 'पभण्ण पण्डित' या 'पभरस' ने 1527 ई. में 'हयसारसमुच्चय' नामक ग्रन्थ की रचना की थी। इसमें घोड़ों की चिकित्सा का वर्णन है।
पद्मरस भट्टाकलंक का शिष्य था। यह दिगम्बर जैन था। पद्मरस जैनशास्त्रों का उच्चकोटि का विद्वान था। मंगराज या मंगरस (द्वितीय)
इसका रचित 'मंगराजनिघण्टु' ग्रन्थ है। यह अप्रकाशित है। मंगराज या मंगरस (तृतीय) कन्नड़ साहित्य में विभिन्न कालों में होने वाले तीन मंगरस माने जाते हैं
1. मंगरस प्रथम - 'खगेन्द्रमणिदर्पण' का कर्ता 2. मंगरस द्वितीय - 'मंगराजनिघण्टु' का कर्ता 3. मंगरस तृतीय - 'सूपशास्त्र' आदि ग्रन्थों का कर्ता मंगरस तृतीय का काल 16वीं शताब्दी का पूर्वार्ध माना जाता है। यह क्षत्रिय था। इसका पिता चंगाल्व सचिवकुलोद्भव कल्लहल्लिका विजयभूपाल था, जो वीरमोघ भी था। माता का नाम देविले और गुरु का नाम चिक्कप्रभेन्दु दिया है। इसकी प्रभुराज, प्रभुकुल और रत्नदीप-उपाधियाँ थी। सूपशास्त्र के अलावा इसके जलनृप-काव्य, नेमिजिनेशसंगति, श्रीपालचरिते, प्रभंजनचरिते और सम्यक्त्वकौमुदी ग्रन्थ हैं। ___ 'सूपशास्त्र' पाकशास्त्र सम्बन्धी ग्रन्थ है। यह कन्नड़ भाषा में 'वार्धक षट्पदि' नामक छन्द में 356 पद्यों में पूर्ण हुआ है। यह विष्टपाक, पानक, कलमन्नपाक, शाकपाक आदि पाकशास्त्र के संस्कृत ग्रन्थों के आधार पर लिखा गया है। इस ग्रन्थ में इन ग्रन्थों का उल्लेख है। मंगरस के अनुसार पाकशास्त्र स्त्रियों के लिए अत्यन्त प्रिय और उपयोगी है। रसनेन्द्रियतुष्टि से ही लौकिक और पारलौकिक सुख मिलता है।
आयुर्वेद (प्राणावाय) की परम्परा :: 647
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