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मंगरस का सूपशास्त्र ग्रन्थ प्राच्य संशोधनालय, मानसगंगोत्री, मैसूर से प्रकाशित हो चुका है। साल्व (16वीं शती, उत्तरार्ध)
यह बहमुखी प्रतिभासम्पन्न जैन कन्नड़ कवि था। इसके पिता का नाम धर्मचन्द्र और गुरु का नाम श्रुतकीर्ति था। इसका काल 16वीं शती का मध्य या उत्तरार्ध माना जाता है।
इसके कन्नड़ भाषा में रचित अनेक ग्रन्थ हैं-भारत, शारदाविलास, रसरत्नाकर, वैद्यसांगत्य। भारत की रचना कवि ने अपने आश्रयदाता राजा साल्वमल्ल या साल्वदेव की प्रेरणा से 'भामिनी षट्पदि' छन्द में की थी। इस ग्रन्थ का अन्य नाम 'नेमीश्वरचरिते' भी है। यह धार्मिक कथा ग्रन्थ है। शारदाविलास में ध्वनिसिद्धान्त का प्रतिपादन है। रसरत्नाकर में अलंकारशास्त्र का निरूपण है और नौ रसों का विस्तार से वर्णन है। 'वैद्यसांगत्य' एक उत्तम वैद्यक ग्रन्थ है। 'सांगत्य' कन्नड़ काव्य के छन्द-विशेष का नाम है। ___ यहाँ जैनाचार्यों द्वारा रचित कतिपय आयुर्वेदीय ग्रन्थों का उल्लेख नातिसंक्षेपविस्तार रूप से किया गया है, जिससे जैन आयुर्वेद की परम्परा और आयुर्वेद के विकास एवं आयुर्वेद साहित्य निर्माण में जैनाचार्यों के योगदान पर कुछ प्रकाश पड़ता है।
सन्दर्भ सूची
1. जयधवला सहित कसायपाहुड भाग 1, पेज्ज दोस बिहत्ति गाथा-115 2. तत्त्वार्थराजवार्तिक, 1/120, भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी 3. गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा 366 4. वही-जीवतत्त्व प्रदीपिका टीका 5. कल्याणकारक अ. 25, श्लोक 54 सम्पादक, श्रीवर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री, सोलापुर 6. स्थानांग, सूत्र 611 7. सुश्रुतसंहिता, सूत्रस्थान, 1/7, हिन्दी व्याख्या-अनिदेव गुप्त, प्रकाशक, मोतीलाल बनारसी
दास, दिल्ली 8. कल्याणकारक पृ. 4, श्लोक 9-10 9. जैन शिलालेख संग्रह भाग-1, पृ. 102 10. कल्याणकारक-सम्पादकीय वक्तव्य पृ. 37 11. कल्याणकारक पृ. 555, श्लोक 86 12. कल्याणकारक-सम्पादकीय पृ. 36 13. कल्याणकारक-सम्पादकीय पृ. 37-38 14. कल्याणकारक-सम्पादकीय पृ. 40 15. कल्याणकारक-पृ. 555, श्लोक 87
648 :: जैनधर्म परिचय
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