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था। जैन शिलालेख संग्रह, आरा 1.5.103 के अनुसार श्रवणबेलगोला के मल्लिषेणप्रशस्ति (सन् 128) में इस प्रसंग का निम्न उल्लेख मिलता है
'महिमा स पात्रकेसरिगुरोः परं भवति यस्य भक्त्यासीत्।
पद्मावतीसहायात्रिलक्षणकदर्शनं कर्तुम् ।। उग्रादित्याचार्य ने अपने ग्रन्थ 'कल्याणकारक' में शल्यतन्त्रं पात्र स्वामी प्रोक्तम् (क. का. 20/85) इत्यादि वाक्य द्वारा इनके द्वारा रचित शल्यतन्त्र नामक ग्रन्थ का उल्लेख किया है। यह ग्रन्थ वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। इनका काल वीरनिर्वाण की ग्यारहवीं शती (5वीं-6वीं शती ई.) माना जाता है।
सिद्धसेन
यह दक्षिण के प्राचीन प्रसिद्ध दिगम्बर आचार्य थे, जिन्होंने 'अगदतन्त्र' (विष) और 'भूतविद्या' (उग्रग्रहशमन) पर ग्रन्थ लिखा था। यह अब अप्राप्य है।
श्री उग्रादित्याचार्य ने अपने ग्रन्थ 'कल्याणकारक' (प. 20/85) में इनका उल्लेख इस प्रकार किया है___ 'विषोग्रग्रहशमनविधिः सिद्धसेनैः प्रसिद्धैः।' अतः इनका काल 8वीं शती से पूर्व का प्रमाणित होता है। इनके काल व स्थान का विशेष परिचय नहीं मिलता है।
मेघनाद
यह दक्षिण की दिगम्बर परम्परा के आचार्य और वैद्यक के विद्वान् थे। इनके द्वारा विरचित 'बालवैद्य' (कौमारभृत्य बालचिकित्सा) का उल्लेख उग्रादित्याचार्य ने अपने ग्रन्थ कल्याणकारक (पं. 20/85) में इस प्रकार किया है-'मेघनादैः शिशूनां वैद्यं'। अतः इनका काल 8वीं शती से पूर्व का ज्ञात होता है। सिंहनाद (सिंहसेन)
इनके नाम का पाठान्तर 'सिंहसेन' मिलता है। इन्होंने 'बाजीकरण' और 'रसायन' पर चिकित्साग्रन्थ लिखा था।
श्री उग्रादित्याचार्य ने अपने ग्रन्थ कल्याण कारक (प. 20/85) में इनका उल्लेख इस प्रकार किया है-'वृष्यं च दिव्यामृतमपि कथितं सिंहनादैर्मुनीन्द्रैः।' ।
वृष्य-बाजीकरण। दिव्यामृत-दीर्घायु देने वाला शास्त्र-रसायनतन्त्र। इनका काल 8वीं शती से पूर्व का प्रमाणित होता है।
आयुर्वेद (प्राणावाय) की परम्परा :: 633
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