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के कर्ता के नाम से मिलती है। इनके अलावा अमरकोश की कई जैनटीकाएँ भी मिलती हैं, जिनमें आशाधर कृत क्रियाकलाप टीका महत्त्वपूर्ण है।
संस्कृत, प्राकृत भाषा के कोशों के अतिरिक्त जैनाचार्यों / कोशकारों ने कन्नड़, हिन्दी आदि भाषाओं में भी कोशों की रचना की है । कवि बनारसीदास ने संवत् 1670 में विजयादशमी के दिन अपने मित्र नरोत्तम के अनुरोध पर हिन्दी नाममाला रची। इस रचना का प्रमुख आधार धनञ्जयनाममाला है, परन्तु यह पद्यानुवाद मात्र नहीं है । कवि ने दूसरे कई कोशग्रन्थों का अध्ययन कर इसे सब तरह से उपयोगी बनाने का प्रयत्न किया है। इसमें कुल 175 पद्य हैं, जिनमें 350 विषयों के नामों का सुन्दर प्रतिपादन है । उक्ति व्यक्ति प्रकरण - यह पं. दामोदर कृत 12वीं शती की रचना है । इसमें देश्य शब्दों का संग्रह किया गया है। यह रचना तत्कालीन लोकबोली का सम्यक् परिचय देती है । इस ग्रन्थ का दूसरा नाम प्रयोगप्रकाश भी है
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उक्तिरत्नाकर - इसके रचयिता सुन्दरगणि हैं । इसकी रचना 17वीं शती में हुई । इसमें देश्यभाषा के सभी प्रकार के उक्ति-मूलक प्रयोगों का संग्रह है । देश्य भाषा के संस्कृतरूप जानने के लिए भी यह अत्यन्त उपयोगी है । उक्तिरत्नाकर का एक अन्य नाम औक्तिक पद है।
उपर्युक्त संस्कृत, प्राकृत एवं देश्य कोश ग्रन्थों के अतिरिक्त आधुनिक युग में भी विविध कोश ग्रन्थों का निर्माण हुआ है। इन आधुनिक कोशों का प्रारम्भ उन्नीसवीं शती से माना जा सकता है । यद्यपि इन कोशों की रचना - शैली का आधार पाश्चात्य विद्वानों द्वारा निर्मित कोश रहे है, तथापि भारतीय कोशकारों द्वारा आवश्यकता के अनुसार यथोचित परिवर्तन - परिवर्धन भी होते रहे हैं। पिछली दो शताब्दियों में जैन सन्तों एवं अन्य विद्वानों द्वारा जैनदर्शन, प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश एवं अन्य क्षेत्रों में विभिन्न कोशों का निर्माण किया गया है।
अभिधानराजेन्द्रकोश- इस कोश का निर्माण श्री विजय राजेन्द्र सूरि ने किया । इसमें अकारादिक्रम से प्राकृत शब्द, संस्कृत रूप, तदनन्तर व्युत्पत्ति, लिंगनिर्देश उसके बाद उसका अर्थ दिया गया है। कोश की श्लोक संख्या 450000 परिमाण है, जिनमें 60000 प्राकृत शब्दों का संकलन / व्याख्यान है । कोश के कुल 10560 पृष्ठ हैं, जो सात भागों में विभाजित हैं । अपने विशाल आकार-प्रकार के कारण इसे महाकोश भी कहा गया है। प्रकाशक जैन प्रभाकर प्रिंटिंग प्रेस, रतलाम ने इसके सात भाग ईसवी सन् 1910 से 1925 तक छापे हैं। इस कोश की अपनी उपयोगिता एवं महत्ता है । कोशकार ने इसमें प्राकृत जैन आगम, वृत्ति, भाष्य, निर्युक्ति, चूर्णि आदि में उल्लिखित सिद्धान्त, इतिहास, शिल्प, वेदान्त, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा आदि का संग्रह किया है। इस कोश की अपनी सीमा भी है। इसमें मात्र अर्धमागधी प्राकृत जैन आगमों का उपयोग
592 :: जैनधर्म परिचय
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