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किया गया है। साथ ही यह एक उद्धरण कोश जैसा बन गया है । इसलिए विद्वानों ने इसकी आलोचना भी की है।
पाइसबुह (प्राकृत शब्दाम्बुधि). - इसके रचयिता विजयराजेन्द्रसूरि हैं । रचनाकाल 1899 ईसवी है। अभिधानराजेन्द्र के लगभग एक दशक बाद इसका सम्पादन हुआ था । यह शब्दकोश अभिधान राजेन्द्र का ही लघु संस्करण है । सम्भवतः यह अप्रकाशित है।
अर्धमागधी कोश - इस कोश के रचयिता मुनि रतनचन्द शतावधानी हैं। यह कोश मूलत: गुजराती में लिखा गया था और इसका हिन्दी एवं अँग्रेजी रूपान्तर अन्य विद्वानों ने किया था। कोश के चार भागों में पहला भाग सन् 1923 में, दूसरा भाग सन् 1927 में, तीसरा भाग सन् 1929 में तथा चौथा भाग सन् 1932 में प्रकाश में आया । कोश के कुल 3600 पृष्ठ हैं। प्रकृत कोश की विशेषता यह है कि इसमें सभी मूल उद्धरण दिये गए हैं। ये उद्धरण संक्षिप्त होने पर भी उपयोगी हैं। इस कोश में विशेषावश्यक भाष्य, पिंडनिर्युक्ति, ओघनियुक्ति आदि ग्रन्थों का उपयोग किया गया है। साथ ही प्रत्येक शब्द के साथ उसका व्याकरण भी है। प्रत्येक भाग में कुछ चित्रों का भी संयोजन है ।
अर्धमागधी कोश का एक अन्य नाम An Illustrated Ardha - Magadhi Dictionary भी है। इसका प्रकाशन S.S. Jain Conference इन्दौर द्वारा हुआ । कोश के परिशिष्ट के रूप में इसका पाँचवाँ भाग भी सन् 1838 में निकला। इसमें अर्धमागधी, देशी तथा महाराष्ट्री शब्दों का संस्कृत, गुजराती, हिन्दी और अँग्रेजी भाषाओं के अनुवाद के साथ प्रकाशन हुआ; परन्तु उनका व्याकरण यहाँ नहीं दिया गया है। यह भाग भी लगभग 900 पृष्ठों का है। मुनि श्री का यह श्रम छात्रों, अध्यापकों तथा शोधकर्ताओं के लिए अत्यधिक उपयोगी है।
पाइयसद्दमहण्णवो (प्राकृतशब्दमहार्णवः ) - यह प्राकृत भाषा का महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी कोश है। कोश के निर्माता पं. हरगोविन्द त्रिविक्रमचन्द्र सेठ हैं। श्री सेठ कलकत्ता विश्वविद्यालय में संस्कृत, प्राकृत और गुजराती भाषा के प्राध्यापक थे । अकेले एक व्यक्ति द्वारा 14 वर्षों के कठोर परिश्रम से यह प्रामाणिक कोश बनाया गया। सम्पादक के अनुसार, इसमें प्राकृत के विविध भेदों और विषयों के जैन - जैनेतर साहित्य के यथेष्ट शब्दों का संकलन, आवश्यक अवतरणों से युक्त, शुद्ध एवं प्रामाणिक रीति से किया गया है। कोश के निर्माण में लगभग 300 ग्रन्थों का उपयोग किया गया है । प्रायः प्रत्येक शब्द के साथ सम्बद्ध ग्रन्थ का प्रमाण दिया गया है। एक शब्द के जितने सम्भावित अर्थ हो सकते हैं, उनका कोश में समावेश किया गया है। इस ग्रन्थ में प्रयुक्त प्रायः सभी ग्रन्थ श्वेताम्बर सम्प्रदाय से सम्बद्ध हैं, तथापि यह कोश प्राकृत भाषा मात्र के लिए उपयोगी है। सन् 1928 में जब इसका प्रथम संस्करण निकला था, तब तक
कोश - परम्परा एवं साहित्य :: 593
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