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उल्लेख नहीं मिलता है तथापि आधुनिक शोध-मर्मज्ञों का कथन ध्यान देने योग्य है। डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन ने लिखा है कि अजितसेन यतीश्वर दक्षिणदेशान्तर्गत तुलुव प्रदेश के निवासी सेनगण-पोगरिगच्छ के मुनि, संभवतया पार्श्वसेन (ज्ञात तिथि 1154 ई.) के प्रशिष्य और पद्मसेन (ज्ञाततिथि 1271 ई.) के गुरु महासेन के सधर्मा या गुरु थे। डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य ने भी अजितसेन के सेनसंघ के आचार्य होने की पुष्टि की है। उनकी इस मान्यता का हेतु शृंगारमंजरी का अन्तिम भाग है।
आचार्य अजितसेन का लेखनकाल लगभग विक्रम की चौदहवीं शताब्दी का मध्य भाग (ई. 1293 के लगभग) है। यही समय पं. अमृतलाल शास्त्री को भी अभीष्ट
अजितसेन की सामान्यत: दो रचनाएँ मानी जाती हैं-(1) अलंकारचिन्तामणि और (2) गारमंजरी। ये दोनों अलंकार-विषयक हैं। इनके अतिरिक्त डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन ने वृत्तवाद, छन्दःप्रकाश और श्रुतबोध-इन तीन ग्रन्थों के कर्ता के रूप में भी प्रस्तुत अजितसेन की सम्भावना व्यक्त की है। लेकिन किसी निश्चित प्रमाण के अभाव में कुछ भी कहना उचित प्रतीत नहीं होता है। शृंगारमंजरी' अद्यावधि अप्रकाशित है। अलंकार-चिन्तामणि : अलंकारशास्त्र के अन्तर्गत जिन विषयों का कथन किया जाता है, उन सभी विषयों का समावेश प्रस्तुत ग्रन्थ 'अलंकार चिन्तामणि' में किया गया है। कहीं-कहीं इस ग्रन्थ की भाषा इतनी सरल है कि संस्कृत का सामान्य ज्ञान रखने वाला व्यक्ति भी इसके मर्म को समझ सकता है। किसी भी व्यक्ति को कवि बनने के लिए प्रारम्भ में किसी सामान्य विषय को लेकर पद्य-रचना करने का निर्देश दिया गया है, उसका निम्नलिखित उदाहरण देखिए कितना सरल है!
शय्योत्थितः कृतस्नानो वराक्षतसमन्वितः।
गत्वा देवार्चनं कृत्वा श्रुत्वा शास्त्रं गृहं गतः।।" प्रस्तुत पद्य में एक श्रावक के दैनिक जीवन का स्वाभाविक एवं मनोहारी चित्र प्रस्तुत किया गया है।
अलंकारों के लिए तो यह ग्रन्थ अलंकार-चिन्तामणि सिद्ध होता है। इसके अधिकांश भाग अर्थात् सम्पूर्ण पाँच परिच्छेदों में से द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ में अलंकारों का ही विस्तृत विवेचन किया गया है, शेष प्रथम और पंचम में अन्य विषयों का समावेश है।
जिन अलंकार-शास्त्रों में स्व-रचित उदाहरण प्रस्तुत किए गये हैं, उनकी संख्या अल्प है। अतः अधिकांश अलंकार-विषयक ग्रन्थों में उदाहरणों का चयन अन्य कवियों के ग्रन्थों से किया गया है। इसमें आलंकारिकों ने प्रायः एक ही सरणी का अनुसरण किया है अर्थात् अपने ग्रन्थों में उन्हीं चुने-चुनाये उदाहरणों को स्थान दिया है, जो
आलंकारिक और अलंकारशास्त्र :: 613
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