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शालाक्य, शल्यहर्ता (शल्यतन्त्र), जंगोली (अगदतन्त्र), भूतविद्या, क्षारतन्त्र (वाजीकरण)
और रसायन। आयुर्वेद शास्त्र में भी आठ अंगों का ही निर्देश किया गया है। महर्षि सुश्रुत के अनुसार-"तद्यथा-शल्यं शालाक्यं कायचिकित्सा भूतविद्या कौमारभृत्यमगदतन्त्रं रसायनतन्त्रंवाजीकरणतन्त्रमिति।" अर्थात् शल्यतन्त्र, शालाक्य तन्त्र, कायचिकित्सा, कौमारभृत्य, भूतविद्या, अगदतन्त्र, रसायन और वाजीकरण ये आठ अंग आयुर्वेद के होते
__ इस प्रकार द्वादशांग में आयुर्वेद का प्रतिपादन होने से जैनधर्म में आयुर्वेद की प्रामाणिकता स्पष्ट है। अब यहाँ यह विचारणीय है कि इसे अंगप्रविष्ट के अन्तर्गत रखा जाय या अंगबाह्य के अन्तर्गत, क्योंकि आचार्यों के अनुसार श्रुतज्ञान दो प्रकार का होता है : 1. अंगप्रविष्ट और 2. अंगबाह्य । द्वादशांग का वर्णन अंगप्रविष्ट के अन्तर्गत किया गया है, जिसमें दृष्टिवाद नामक बारहवाँ अंग और उसके भेद-प्रभेद भी समाविष्ट हैं। कुछ विद्वानों का यह भी अभिमत है कि वर्तमान में दृष्टिवादांग पूर्णतः लुप्त हो चुका है, उसका कोई भी भेद किसी भी रूप में विद्यमान नहीं है। अतः तद्विषयक जो ग्रन्थ आजकल मिलते हैं, वे सर्वज्ञ के साक्षात् वचन न होकर उनके वचनों को आधार बनाकर रचित ग्रन्थों पर आधारित हैं। आयुर्वेद, जिसे प्राणावाय की संज्ञा दी गयी है, पर भी यह बात लागू होती है। ऐसी स्थिति में उसे अंगप्रविष्ट श्रुत मानना उचित नहीं है, किन्तु यह तर्क समीचीन प्रतीत नहीं होता। आज भी बारहवें दृष्टिवाद अंग का कुछ भाग उपलब्ध है। शास्त्रकारों आचार्यों ने पहले ही अंगप्रविष्ट श्रुत के बारह और अंगबाह्य श्रुत के चौदह भेद बतलाए हैं। इनमें कोई भी परिवर्तन युक्तियुक्त प्रतीत नहीं होता। अतः आयुर्वेद या प्राणावाय को अंगबाह्य में गिनना तर्कसंगत नहीं माना जा सकता। अनुयोग के अन्तर्गत __ जैन सिद्धान्तों या जैन मान्यताओं के अवलम्बनपूर्वक जैनाचार्यों के द्वारा जो भी ग्रन्थ रचे गये हैं, उस सम्पूर्ण जैन वाङ्मय को चार अनुयोगों में विभाजित किया गया है। यथा-प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग। जिन शास्त्रों में तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि महापुरुषों के चरित्र (जीवन-प्रसंगों) का विस्तार-पूर्वक वर्णन हो वह प्रथमानुयोग है, जिस शास्त्र में गुणस्थान, मार्गणा आदि रूप जीव का, कर्मों का तथा त्रिलोक आदि का निरूपण हो वह करणानुयोग है, जिस शास्त्र में श्रावक (गृहस्थ) एवं श्रमण (मुनि) धर्म के आचरण का निरूपण विस्तारपूर्वक हो वह चरणानुयोग है तथा जिस शास्त्र में षद्रव्य, सप्त तत्त्व आदि सैद्धान्तिक विषयों तथा स्व-पर-भेदविज्ञान आदि विषय का समीचीन निरूपण किया गया हो, वह द्रव्यानुयोग है। इस चतुर्विध अनुयोग में आयुर्वेद विषय का कथन किसके अन्तर्गत किया गया है? इस
624 :: जैनधर्म परिचय
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