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रूपकमभिनेतुमादेशः। – नलविलास, पृ. 1. श्रीमदाचार्यश्रीहेमचन्द्रशिष्यस्य प्रबन्धशतकर्तुर्महाकवेः रामचन्द्रस्य भूयांसः प्रबन्धाः। -
निर्भयभीम व्यायोग, पृ.1. 16. आह श्रीहेमचन्द्रस्य न कोऽप्येवं हि चिन्तकः ।
आद्योप्यभूदिलापालः सत्पात्राभ्भोधिचन्द्रमाः ।। सज्ज्ञानमहिमस्थैर्य मुनीनां किं न जायते। कल्पद्रुमसमे राज्ञि त्वयीदृशि कृतस्थितौ ।। अस्त्यामुष्यायणो रामचन्द्राख्यः कृतिशेखरः।
प्राप्तरेखः प्राप्तरूपः संघे विश्वकलानिधिः।। -वही, पृ. 131-133. 17. प्रबन्ध-चिन्तामणि, कुमारपालादिप्रबन्ध, पृ. 89. 18. पंचप्रबन्धमिषपंचमुखानकेन विद्वन्मनः सदसि नृत्यति यस्य कीर्तिः।
विद्यात्रयीषणमचुम्बितकाव्यतन्द्रं कस्तं न वेद सुकृती किल रामचन्द्रम्।। -नलविलासनाटक,
प्रस्तावना, पृ. 33. 19. प्राणाः कवित्वं विद्यानां लावण्यमिव योषिताम्।
विद्यवेदितोऽप्यमै ततो नित्यं कृतस्पृहाः।। -प्रारम्भिक प्रशस्ति, 9. शब्दलक्ष्म-प्रभालक्ष्म-काव्यलक्ष्म-कृतश्रमः।
वाग्विलासस्त्रिमार्गो नो प्रवाह इव जाह्नजः।। -अन्तिम प्रशस्ति, 4. 20. दी नाट्यदर्पण ऑफ रामचन्द्र एण्ड गुणचन्द्रः ए क्रिटीकल स्टडी, पृ. 221-222, नलविलास
के संपा, जी.के. गोन्डेकर एवं नाट्यदर्पण के हिन्दी व्याख्याकार आचार्य विश्वेश्वर ने उक्त
ग्रन्थों की भूमिका में रामचन्द्र के ज्ञात ग्रन्थों की कुल संख्या 39 मानी है। 21. अलंकारमहोदधि, प्रारम्भिक प्रशस्ति, 1/6. 22. तस्य गरोः प्रियशिष्यः प्रभुनरेन्द्रप्रभः प्रभावाढ्यः ।
योऽलंकारमहोदधिमकरोत् काकुत्स्थकेलिं च।। -महामात्य वस्तुपाल का साहित्य मण्डल और संस्कृत साहित्य में उसकी देन, विभाग
2, अध्याय-5, पृ. 104-106 23. वही, विभाग-3, अध्याय-14, पृ. 225. 24. द्रष्टव्य-अलंकार-महोदधि, प्रारम्भिक प्रशस्ति, 1/17-18. 25. तुलना कीजिए-अलंकार-महोदधि, 1/10 की टीका और काव्यानुशासन, 1/10 की स्वोपज्ञ __अलंकार-चूड़ामणि टीका में। 26. महामात्य वस्तुपाल का साहित्य मण्डल और संस्कृत साहित्य में उसकी देन, पृ. 90. 27. तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी के जैन संस्कृत महाकाव्य, पृ. 255 एवं जैन साहित्य का बृहद्
इतिहास, भाग-6, पृ. 77, 514. 28. द्रष्टव्य-संस्कृत शास्त्रों का इतिहास, पृ. 240. 29. धम्मक्खाणय कोस (धर्माख्यान कोश) के टीकाकार, वि.सं. 1166 -जैन साहित्य का
बृहद् इतिहास, भाग-6, पृ. 253. चूनड़ीरास, निर्झरपंचमीकहारास और कल्याणरास के रचयिता अपभ्रंश कवि (ई. 12वीं शती)-तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-4, पृ. 191. कालिकाचार्य कथा (प्राकृत) के रचयिता एवं रविप्रभ के शिष्य (सं. 1286)-जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-6, पृ. 210. कालिकाचार्य कथा (संस्कृत) के रचयिता एवं रत्नसिंहसूरि के शिष्य (14वीं शती), वही,
आलंकारिक और अलंकारशास्त्र :: 619
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