________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ग्रन्थ के अध्ययन से उनकी नवीन मान्यताओं पर प्रकाश पड़ता है और वैराग्य की झलक भी दृष्टिगोचर होती है।
'काव्यप्रकाश-खण्डन' काव्यप्रकाश की तरह दस उल्लासों में विभक्त है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि जैनाचार्यों ने अन्य अनेक विषयों के साथ ही लोकव्यवहार में प्रयुक्त होने वाले अलंकारशास्त्रीय सिद्धान्तों का भी सम्यक् विवेचन किया है, जिससे उनके इहलोक विषयक ज्ञान की भी पुष्टि होती है।
सन्दर्भ
1. जैनधर्म का मौलिक इतिहास, भाग-2, पृ. 590. 2. प्रभावक चरित-आर्यरक्षितचरित, पृ. 9-18.
आर्यरक्षित का जीवन चरित प्रभावक चरित के पूर्व रचित ग्रन्थों-आवश्यक चूर्णि और
आवश्यकमलयगिरि-वृत्ति आदि में भी पाया जाता है। 3. सुन्दरपअ. विण्णाणं विमलालंकाररेहिसरीरं।
सुहदेविअंच कव्वं च पणविअ पवरण्णड्ढं।।1।। 4. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-5, पृ. 99. 5. प्राकृत भाषा का एकमात्र आलंकारिक ग्रन्थ अलंकार दर्पण-गुरुदेव श्रीरत्नमुनि स्मृतिग्रन्थ,
पृ. 394-398. 6. 'प्राकृत भाषा का एकमात्र अलंकारशास्त्रः अलंकारदप्पण'। -मरुधरकेशरी मुनिश्री मिश्रीमलजी ___महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ में प्रकाशित, चतुर्थ खण्ड, पृ. 429. 7. अणहिल्लपाटलं पुरमवनिपतिः कर्णदेवनृपसूनुः।
श्रीकलशनामधेयः करी च जगतीह रत्नानि।। -वाग्भटालंकार, 4/132. 8. जैन साहित्य और इतिहास, पृ. 328.
गणेश त्र्यंबक देशपांडे ने वाग्भट का लेखन काल ईस्वी सन् 1122 से 1156 माना है।
-भारतीय साहित्य-शास्त्र, पृ. 135. 9. शतैकादशके साष्टासप्ततौ विक्रमार्कतः।
वत्सराणां व्यतिक्रान्ते श्रीमुनिचन्द्रसूरयः।। आराधनाविधिश्रेष्ठं कृत्वा प्रायोपवेशनम्। शमपीयूषकल्लोलप्लुतास्ते त्रिदिवं ययुः ।। वत्सरे तत्र चैकत्र पूर्णे श्रीदेवसूरिभिः ।
श्रीवीरस्य प्रतिष्ठां स थाहडो कारयन्मुदा।। -प्रभावकचरित, वादिदेवसूरिचरित, 71-73. 10. हिस्ट्री आफ इंडियन लिटरेचर (एम. विन्टरनित्स), वाल्यूम सेकेण्ड, पृ. 282. 11. प्रभावकचरित, हेमचन्द्रसूरिचरित, श्लोक-34. 12. कुमारपाल प्रतिबोध, हेमचन्द्रजन्मादिवर्णन. प. 21. 13. हेमचन्द्राचार्य का शिष्य मण्डल, पृ. 4. 14. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-5, पृ. 100. 15. शब्द-प्रमाण-साहित्य छन्दोलक्ष्मविधायिनाम्।
श्री हेमचन्द्रपादानां प्रसादाय नमो नमः॥ – हिन्दी नाट्य-दर्पण, विवृत्ति, अन्तिम प्रशस्ति, पद्य-1. सूत्रधार-दत्तः श्रीमदाचार्यहेमचन्द्रस्य शिष्येण रामचन्द्रेण विरचितं नलविलासाभिधानमाद्यं
618 :: जैनधर्म परिचय
For Private And Personal Use Only