________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बिजनौर हैं। यह एक पारिभाषिक कोश है। इसमें प्रत्येक पारिभाषिक का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है । ऋषभदेव जैन ग्रन्थमाला, सांगानेर, जयपुर से इसका प्रकाशन हुआ है।
मूलाचार वसुनन्दि पारिभाषिक कोश - इसमें मूलाचार की वसुनन्दिकृत व्याख्या के आधार पर पारिभाषिकों की व्याख्या दी गयी है। इस कोश के सम्पादक भी डॉ. रमेशचन्द्र जैन, बिजनौर हैं। इनके द्वारा षट्खंडागम-धवला - जीवट्ठाण कोश के रूप में एक अन्य पारिभाषिक कोश का कार्य प्रगति पर है I
जैन उद्धरण कोश - यह एक विशेषप्रकार का कोश है। इसमें दिगम्बर एवं श्वेताम्बर सम्प्रदाय के व्याख्यात्मक साहित्य से उद्धरणों का चयन एवं संकलन कर उन्हें अकारादि क्रम से संयोजित किया गया है। मूलतः यह कार्य बी. एल. इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली की शोध एवं प्रकाशन योजना से सम्बद्ध है । इस कोश की सामग्री का संकलन एवं सम्पादन प्रकृत आलेख के लेखक ने स्वयं किया है। उक्त कोश को तीन या चार भागों में प्रकाशित करने का प्रस्ताव है। इसका पहला भाग सन् 2003 में बी.एल.आई. एवं एम. एल. बी. डी. द्वारा प्रकाशित हो चुका है। इसमें ईसवी चौथी शती से 9वीं शती तक के व्याख्यात्मक साहित्य से लगभग 11000 उद्धरणों का संयोजन है। दूसरा भाग भी सन् 2010 में इसी संस्थान से प्रकाशित हो चुका है। इसमें ईसवी 10-12 शती के साहित्य से लगभग 12000 उद्धरणों का संकलन है । कोश का तीसरा भाग मुद्रणाधीन है। यह कोश ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें जैन परम्परा के व्याख्यात्मक साहित्य में उद्धृत वैदिक, जैन और बौद्ध परम्परा के प्राप्त व अप्राप्त ग्रन्थों अथवा ग्रन्थकारों के उद्धरण संयोजित हैं ।
भिक्षु आगम विषय कोश - इस कोश में आगम के विषयों को संगृहीत किया गया है। इसका प्रथम भाग ई. सन् 1996 में जैन विश्वभारती से प्रकाशित हुआ। जिसमें अर्धमागधी (श्वेताम्बर) परम्परा में मान्य पाँच आगमों- आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, नन्दी और अनुयोगद्वार तथा इनके व्याख्या ग्रन्थों के आधार पर विषयों का व्याख्यान मूल- सन्दर्भ तथा हिन्दी अनुवाद सहित किया गया है। इस कोश के दूसरे भागों में आचारचूला, निशीथ, दशा, कल्प और व्यवहार तथा इनके व्याख्या-ग्रन्थों के आधार पर विषयों का विश्लेषण है। विशेषता यह है कि उनका मूल पाठ एवं हिन्दी अनुवाद साथ में है। इस भाग का प्रकाशन ई. 2005 में हुआ। आगे का कार्य पर है। यह एक महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी कोश है।
जैन पारिभाषिक शब्दकोश- इसका प्रकाशन जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय, लाडनूँ से सन् 2009 में हुआ है। इसकी विशेषता यह है कि इस कोश में श्वेताम्बर
कोश - परम्परा एवं साहित्य :: 599
For Private And Personal Use Only